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90/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन
भारतीय विद्वानों ने विभिन्न कथा-कहानियों में बार-बार व्यवहत होने वाली एक जैसी घटनाओं अथवा विचारों को अभिप्राय मानने की भ्रान्तियां की हैं। जबकि घटना और विचार दोनों ही किसी एक निश्चित अभिप्राय के परिणाम होते हैं। जैसे किसी कथा में मनुष्य बलि के होने की घटना आती है। कोई पात्र विशेष मनुष्य बलि का होना ठीक नहीं समझता और आखिरी समय में मनुष्य को बलि होने से बचा लिया जाता है। इसमें बलि की घटना और बलि को बचाने का विचार दोनों हैं। कई जगह इनकी पुनरावृत्ति भी हो सकती है। किन्तु इसके मूल में है- 'मनुष्य जीवन की श्रेष्ठता का अभिप्राय।
इसी तरह मानवीय मूल वृत्तियों से सम्बन्धित अनेक अभिप्राय हो सकते हैं, जिनमें सद्असद वृत्तियों को उभारने के लिए अनेक घटनाओं और विचारों का उपयोग किया जा सकता है। अतः मात्र घटनाओं और विचारों की पुनरावृत्ति को अभिप्राय मानने की अपेक्षा उनके जनक को अभिप्राय मानना अधिक युक्तिसंगत होगा। इस प्रकार मानव जीवन की सुख और दुख से संयुक्त जो शाश्वत कथा है उसके संवाहक भाव को अभिप्राय कहा जा सकता है। भले हम इसे किसी नाम से पुकारें।
अभिप्राय-वर्गीकरण : प्रायः अभिप्रायों का वर्गीकरण अभिप्राय सम्बन्धी उक्त धारणा को केन्द्र बनाकर ही किया गया है, जिसमें घटनाओं और विचारों के एकांश की बहुलता है। मूल अभिप्रायों के अनुसार विषयवार वर्गीकरण कम हुआ है। टॉमसन की अभिप्राय-अनुक्रमणिका (motif Index) अभिप्राय-अध्ययन के क्षेत्र में प्रथम कार्य होने से सराहनीय है, वैज्ञानिक भी। किन्तु भारतीय कथा-साहित्य के अभिप्रायों के वर्गीकरण के सन्दर्भ में उसमें कुछ परिवर्तन भी अपेक्षित है। यथा- उक्त अनुक्रमणिका में जो पशु-विषयक अभिप्रायों की तालिका है उसका सम्बन्ध केवल पशुओं से नहीं है और न वे पशुओं के अभिप्राय ही हैं। बल्कि इन सभी अभिप्रायों का सम्बन्ध मानव की मूल कल्पना वृत्ति से है, जिसका उपयोग उसने अपनी अपूर्णता को पूर्ण करने के लिए इन अभिप्रायों के माध्यम किया है। मानव ने अपने ही गुणों को विकसित रूप में पशु-जगत् में देखना चाहा है।
भारतीय कथा-साहित्य के सभी अभिप्रायों का वर्गीकरण यहाँ प्रतिपाद्य भी नहीं है और न सम्भव ही। अतः केवल पालि-प्राकृत कथा-साहित्य के कुछ प्रमुख अभिप्रायों का वर्गीकरण यहाँ प्रस्तुत है। अभिप्राय-वर्गीकरण में यहाँ मानवीय मूल वृत्तियों का विशेष ध्यान रखा गया है। पालि-प्राकृत कथा-साहित्य के अभिप्राय निम्न वर्गों में विभक्त किये जा सकते हैं: 1. मानवीय वृत्तियों से सम्बद्धः(अ) मानवीय वृत्तियां दो प्रकार की है- सद् और असद् । अधिकांश अभिप्राय इन्हीं दो वृत्तियों से मूल रूप से सम्बन्धित है। अतः अभिप्रायों को घटनाओं के नाम से वर्गीकृत न कर इन्हीं दो वृत्तियों के नाम से वर्गीकृत करना चाहिये। यथा- संकटाकीर्ण कार्य सौपना, हाथी को वश में करना, सात समुन्दर पार से गुलाब का फूल लाना, धनुष तोड़ना, प्रेयसी को बन्धन से छुड़ाना, फलक के सहारे समुद्र पार करना आदि तथाकथित अभिप्राय (घटनाएं) 'पराक्रम-प्रदर्शन सवृत्ति के अभिप्राय के अन्तर्गत रखे जा सकते है। इसी तरह स्त्रियों द्वारा पति को धोखा,
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