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96/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन
चारों और चार भयंकर सर्प कुंकार मार रहे है और सरकंडे की जड़ में एक भयंकर अजगर लटका हुआ है। वह सरकंडा का अगला भाग पकड़ कर लटक गया। तभी उसने देखा कि दो बड़े-बड़े चूहे-एक सफेद एक काला- उस सरकंडे की जड़ को काटने में लगे हैं। हाथी इस पुरुष तक पहुँच नहीं सका, इसलिए वह गुस्से में जोर-जोर से वट वृक्ष को हिलाने लगा। वृक्ष पर मधुमक्खियों का एक छत्ता लगा हुआ था। छत्ते की मक्खियां उड़कर उस पुरुष के शरीर में लिपट कर काटने लगीं। साथ ही छत्ते में से मधु का एक विन्दु उस पुरुष के माथे पर टपक कर उसके मुंह में चला गया। वह पुरुष मधु के स्वाद में मग्न हो गया। तभी वहां से एक विद्याधर का विमान गुजरा। उसने इस पुरुष को संकटापन्न स्थिति में देख करूणावश अपने साथ चलने को कहा। किन्तु पुरुष यह कह कर कि मधु की एक-दो बूंद शायद और आ जाय उन्हें चख लें, वहीं लटका रहा 20
इस कथानक में भयंकर अटवी संसार का प्रतीक है, पुरुष जीव का, राक्षसी वृद्धावस्था और हाथी मृत्यु का। वट वृक्ष मोक्ष है, जहाँ मरणस्ष हाथी का भय नहीं हैं। कुंआ मनुष्य-जन्म का प्रतीक है, चार सर्प (क्रोध, मान, माया, लोभ) चार कषाओं के और सरकंडा जीवन का। सफेद काले चूहे समय के शुक्ल और कृष्ण पक्ष हैं, जो जीवन को क्रमशः क्षीण करते हैं। मधुमक्खियां अनेक प्रकार की शारीरिक व्याधियां हैं। अजगर नरक का प्रतीक है, विद्याधर धर्माचार्य या शुभाचरण का और मधु की बूदें सांसारिक विषय-भोग की।।
सर्षप दाना : 'सर्षप दाना अभिप्राय प्राकृत-कथाओं में सांसारिक अनित्यता और मनुष्य-जन्म की दुर्लभता को प्रतिपादन करने में प्रयुक्त हुआ है। किसी एक वृद्धा के अत्यन्त प्रिय एवं एकमात्र सहारा पुत्र का अचानक मरण हो जाता है। वह वृद्धा अपने जवान पुत्र की लाश को लेकर आचार्य के पास जाकर कहती है कि तुम्हारे धर्म का पालन करते हुए भी मेरे पुत्र की मृत्यु कैसे हो गई। इसे जिन्दा करें। आचार्य उसे मृत्यु के शाश्वत नियम को समझाने के लिए किसी ऐसे घर से सरसों के दाने मांगकर लाने को कहते हैं, जहां कभी किसी की मृत्यु न हुई हो।८
यह अभिप्राय अनेक जगह प्रयुक्त हुआ है।23 कहीं सरसों के दानों की जगह चावल के दाने मांगने को कहा गया है। जातक कथाओं में इसका बदला हुआ रूप मिलता है। बहुत सम्भव है मूलरूप यही रहा हो। सरसों या चावल के दाने बाद के रूपान्तर हों। उपसालहक जातक में एक ब्राह्मण अपने पुत्र से कहता है कि मुझे मरने के बाद ऐसी जगह जलाना जहां कभी कोई मुर्दा न जला हो। भगवान बुद्ध उसके पुत्र को बताते हैं कि दुनिया में ऐसी कोई जगह नहीं है, जहाँ कोई न कोई जलाया न गया हो।24
मनुष्य-जन्म की दुर्लभता प्रतिपादित करते हुए सरसों के दानों द्वारा इसे स्पष्ट किया गया है। यदि समस्त भरत क्षेत्र के धान्यों को मिला कर उसमें एक प्रस्थ सरसों मिला दी जाये तो जैसे किसी दुर्बल और रोगी वृद्धा स्त्री के लिए इस थोडी-सी सरसों को समस्त धान्यों से पृथक करना अत्यन्त कठिन है उसी प्रकार अनेक योनियों में भ्रमण करते हुए जीव को मनुष्य-जन्म की प्राप्ति दुर्लभ है। इसके लिए अन्य दृष्टान्त भी दिये गये हैं।25
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