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98/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन
सकल्पी होने से सुखी। जिनरक्षित यक्षिणी की बातों में आ जाने से मृत्यु को प्राप्त हुआ, जिनपाल सकुशल लौटकर प्रवजित हो गया। एक कछुआ असंयमी होने से मारा गया, दूसरा संयमी होने से बच गया। सिंहगुफाप्रवासी मुनि मन चंचल होने से वेश्या को स्वीकारने को तत्पर हो गये, स्थूलभद्र उसके घर बारह वर्ष रहने पर भी दृढ़ रहे। इन सब कथानकों में साधना में दृढ़ रहने के लिए प्रेरित किया गया है। सम्यक्त्व में निःशंकित होने के लिए। अपकर्ष-उत्कर्ष से सम्बन्धित इस अभिप्राय के अत्यधिक प्रचलित होने के कारण ही दो जीवों के अपकर्ष एवं उत्कर्ष को दिखाने के लिए समराइच्चकहा जैसे विशाल ग्रन्थ का सृजन हो सका है, जिसमें नौ भवों तक गुणसेन और अग्निशर्मा के जीवों के अपकर्ष-उत्कर्ष की प्रक्रिया चालू रहती है।
सत्य-परीक्षा: सत्य परीक्षा अभिप्राय का तात्पर्य है किसी की व्रत, प्रतिज्ञा, संकल्प व शील आदि में दृढ़ता की परीक्षा करना। बहुत बार ऐसा होता है कि निरपराध व्यक्ति को पड्यन्त्र के द्वारा अपराधी घोषित कर दण्ड दिया जाने लगता है, तब उसके सत की परीक्षा की जाती है। प्राकृत कथाओं में इसके अनेक उदाहरण हैं, जिनमें विभिन्न उददेश्यों से सत्य-परीक्षा की गयी है। सेठ सदर्शन 38 सुभद्रा,39 सुलसा,40 आसाढ़भूति 1 चूलिनीपिता 2 केसवकुमार,43 नन्दिसेन,44 श्रमणोपासक अरण्यक आदि। ब्राह्मण, जैन, बौद्ध कथाओं के अतिरिक्त परीक्षा का अभिप्राय (सच्चक्रिया) अन्य कथा-साहित्य में भी उपलब्ध होता है।46
वैराग्य प्राप्ति के निमित्तों की योजना : यह अभिप्राय पालि-प्राकृत कथाओं में सर्वाधिक रूप में प्रयुक्त हुआ है। बौद्ध और जैन दोनों धर्मों में गृहस्थ जीवन की अपेक्षा सन्यस्त जीवन को ही अधिक महत्व दिया गया है। अतः सांसारिक सुखों की अनित्यता प्रतिपादन कर जीवों के कल्याण के लिए उन्हें संसार से विमुख किया गया है। किसी धर्माचार्य द्वारा अपने-अपने धर्म में प्रव्रजित। वैराग्य प्राप्ति में अनेक कारणों को निमित्त बनाया गया है। श्वेत केश (Gray Hair ) इन कारणों में सर्वाधिक प्रचलित है।47 प्राकृत कथाओं में वैराग्य प्राप्ति के अन्य निमित्तों की भी योजना की गई है। यथा-इच्छा (गोविन्द वाचक), रोष (शिवभूति), दरिद्रता (लकड़हारा), अपमान (नंदिषेण ), प्रतिशोध (रहैतार्य), पुत्रस्नेह (वजस्वामी)48 कायाकी तुच्छता (भरत),49 ध्वजदुर्गन्ध (दुर्मुख),50 हिंसा (अरिष्टनेमि), पति की प्रव्रज्या (राजमति आदि अनेक) एवं आत्मग्लानि (अर्जुनमाली आदि।
व्रतों का पालन : भारतीय कथाओं में यों तो व्रतों के माहात्म्य को प्रदर्शन करने वाले अनेक कथानक है। किन्तु किसी कथा विशेष के पात्रों व उनकी क्रियाओं को व्रतों के प्रतीकों के रूप में प्रस्तुत करना प्राकृत-कथों की अपनी विशेषता है। ज्ञाताधर्मकथा में धन्ना सेठ और उसकी बहुओं की सुन्दर लोक कथा आयी है। श्वसुर अपनी चारों पुत्र वधुओं को धान के पांच-पांच दाने देता है। सबसे बड़ी वधु उज्झिका उन दानों को निरर्थक समझ कर फेंक देती है। दूसरी भोगवती उनका छिलका
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