________________
बिन्दु - अभिप्राय का विकास / 115 अनिवार्य स्वीकार किया गया है। उसके हाथों से बचकर जीव कहीं भाग नहीं सकता । मृत्यु अंधकारमय और व्यापक है। सम्भवतः इस विचारधारा ने ही हाथी को मृत्यु का प्रतीक मानने के लिए मजबूर किया हो । जंगल के अन्य सभी पशुओं में हाथी सूंड़ के कारण विशिष्ट है। उसकी सूंड मृत्यु की दीर्घ भुजा का प्रतीक है, विशालता मुत्युकी व्यापकता का तथा कृष्णवर्ण मृत्यु के अंधकार का । माघ ने भी एक जगह अंधकार की उपमा हाथी से दी है। 24 अतः हाथी को मृत्यु का प्रतीक स्वीकारना असंगत नहीं है।
दूसरी बात हाथी को जहाँ कहीं शुभ माना गया है, प्रायः वहाँ श्वेतहस्ती का उल्लेख है, कृष्ण का नहीं । अतः मृत्यु को जीतने वाले बुद्ध का प्रतीक यदि श्वेतहस्ती को स्वीकार किया गया है तो कोई असंगति नहीं है। भारतीय संस्कृति व साहित्य में हस्ती के अन्य प्रसंग भी उसके मृत्यु- प्रतीक के साथ जुड़े हुए हैं। गज और ग्राह का प्रसंग इस बात का रूपक है कि मृत्यु कितनी भी बलशाली क्यों न हो उस पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है। किसी नायक विशेष द्वारा हाथी को वश में करने के प्रसंग भी मृत्यु- विजय की ओर संकेत करते हैं। कमल और हस्ती का संयोग बहुत ( प्रचलित है। जीवन और मृत्यु के ये स्पष्ट प्रतीक हैं। सरोवर में खिलता हुआ कमल जीवन और उसको नष्ट कर डालने वाला हस्ती मृत्यु है ।
इस अभिप्राय के महाभारत रूपांतर में जो हस्ती को सम्वत्सर का प्रतीक माना है, प्रकारांतर से वह भी मृत्यु से जुड़ा हुआ है। जीव की मृत्यु आयु समाप्त होने पर होती है। आयु को क्षीण करने वाला समय है, जो वर्ष, ऋतु एवं मास आदि में विभक्त है। अतः हस्ती को मृत्यु का प्रतीक स्वीकारना असंगत प्रतीत नहीं होता। जिस वृहत्कथा कोश वाले रूपांतर में हाथी के स्थान में व्याघ्र का प्रयोग हुआ है, वहाँ मृत्यु का भयावह रूप ही स्पष्ट हो सका है I
3. वटपादप महाभारत में जंगल के सामान्य वृक्षों का उल्लेख है, जबकि कुछ प्राकृत रूपान्तरों में वटवृक्ष विशेष का । इसीकी जटा अथवा जड़ को पकड़ कर पथिक कुंए में लटका रहता है। वटवृक्ष को मोक्ष का प्रतीक कहा है। दिषयातुर मनुष्य इस पर नहीं चढ़ सकता और न मृत्यु ही इसका कुछ बिगाड़ सकती है। वटपादप को मोक्ष का प्रतीक मानना और हाथी का उसके सम्मुख शान्त रहना इस सम्भावना को जन्म देता है कि शायद यह बौद्ध धर्म के बोधिवृक्ष और हस्ती का रूपान्तर है। अनेक जगह बोधिवृक्ष का हस्ती द्वारा अभिवादन करने के उल्लेख मिलते है | 25
-
4. कूप :- मधुबिन्दु अभिप्राय के सभी रूपान्तरों में कुंए का उल्लेख है। महाभारत में कूप ही प्रधान है। वहाँ कुंआ शरीर का प्रतीक है, उसमें गिरने वाला ब्राह्मण जीव का । कुंए में ब्राह्मण की उल्टे हो लटकने की स्थिति गर्भ-स्थिति की द्योतक है । विन्टरनित्स ने सम्भवतः मधुबिन्दु अभिप्राय के इसी रूप को सर्व प्रथम देखा था, इसीलिए उन्होंने इस का अनुवाद main in the well 'कूपनर' किया है। 26 इस शब्द द्वारा संसार के संकटों की अभिव्यक्ति तो होती है, किन्तु इसके लिए मधुविन्दु शब्द पूर्ण सार्थक है।
मधुबन्धु अभिप्राय की उपर्युक्त व्यापकता एवं अर्थवत्ता हमें यह सोचने के लिए मजबूर करती है कि प्राकृत कथाओं में ऐसे अनेक अभिप्रायों का यदि तुलनात्मक अध्ययन किया जाय तो इससे कथाओं का हार्द स्पष्ट होगा और उनकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि भी उभर करा सामने आ सकेगी, जो भारतीय कथाओं के महत्व को विश्वकथा साहित्य में दुगना कर देगी। भारतीय कथा-साहित्य में प्राकृत कथा साहित्य की समृद्धता को देखते हुए यह कार्य किसी एक विद्वान् के
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Educationa International