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पालि-प्राकृत कथाओं के अभिप्राय/99 उतार कर खा जाती हैं। तीसरी रक्षिका उन्हें सुरक्षित रूप से रख लेती है और चौथी बहू रोहिणी उन दानों को क्यारियों में बोकर सैकड़ों घड़े धान उत्पन्न करती है। श्वसुर अन्त में इसी को घर की स्वामिनी बना देता है।52
इस कथा में श्वसुर धर्माचार्य का प्रतीक है, चारों बहुएं चार मुनिओं की और धान के पाँच कण पाँच अणुव्रतों के। अणुव्रतों का तिरस्कार करने वाला गतियों के चक्कर लगाता है, उनमें विश्वास करने वाला सुख भोगता है और पालन करने वाला पुण्यबंध करता है। किन्तु जो स्वयं पालन करता हुआ उनके द्वारा दूसरों के कल्याण का भी प्रयत्न करना है, वह कर्मबन्धन से मुक्त हो जाता है। आत्मा के सच्चे सुख का अधिष्ठाता।
तीन वणिक पुत्रों के कथानक द्वारा भी व्रतों के पालन पर जोर दिया गया है। एक सेठ तीन पुत्रों को बराबर-बराबर धन देकर व्यापार करने भेजता है। पहिला पुत्र अपने हिस्से से कई गुना अधिक कमाकर लाता है। दूसरा पुत्र ब्याज आदि के द्वारा मूल धन को सुरक्षित रखता है और तीसरा खाली हाथ घर लौटता है। जीव मनुष्य- जीवन की सम्पत्ति लेकर उत्पन्न होता है। कोई इसका उपयोग कर अपनी साधना द्वारा मोक्ष प्राप्त करना है, कोई सद्गुणों का पालन कर स्वर्गादि के सुख भोगता है और कोई सत्कर्म त्यागकर नरकादि में ठोकरें खाता-फिरता है।53
पूर्वभव : भारतीय दर्शन शास्त्रियों ने सम्भवतः अपने चिन्तन का बहुभाग कर्मफल और पुनर्जन्म के प्रतिपादन में ही लगाया है। भारतीय साहित्य इससे भरा पड़ा है। पालि कथाओं में वर्तमान जीवन की व्याख्या द्वारा पूर्वभव का विश्लेषण किया गया है। जातक कथाओं में तो अतीतवत्थु ही बहुभाग घेरती हैं। प्राकृत कथाओं में पूर्वभव के वृतान्त द्वारा वर्तमान की एवं वर्तमान के द्वारा भावीभव की व्याख्या की गयी है। अतः इन कथाओं में पूर्वभव अभिप्राय अनायास ही महत्वपूर्ण हो गया है। क्योंकि दार्शनिक सिद्धान्तों के महत्व, शुभ-अशुभ कार्यो के परिणाम एवं महापुरुषों के आदर्शों को उपस्थित करने के लिए पूर्वभव वर्णन के सिवाय अन्य कोई उपयुक्त साधन नहीं था। विमानवत्थु पेतवत्थु, विपाकसूत्र एवं निरयावलि की कथाएं मुख्यतया उदाहरण स्वरूप देखी जा सकती हैं।
विषयभोग वमन या विषफल : पालि-प्राकृत कथाओं में सांसारिक सुखों को तुच्छ और क्षणिक स्वीकारा गया है। बन्धन का कारण भी। अतः अनेक घृणित वस्तुओं से विषयभोगों की तुलना की गयी है। वमन या विषफल की उपमाएं अधिक प्रचलित हैं। पालि कथाओं में सर्प का उदाहरण देकर समझाया गया है कि जैसे सर्प अपने उगले हुए वपित विष को पुनः नहीं खाता, बैसे ही साधक को एक बार परित्यक्त विषय-भोगों को पुनः नहीं अपनाना चाहिये। प्राकृत कथाओं में राजमति ने रथनेमि को अपने वमन द्वारा55 एवं नागला ने अपने दीक्षितपति भावदेव को पुत्र के वमन द्वारा56 सांसारिक विषय-भोगों की अपवित्रता का उपदेश दे पुनः साधना में रत किया है।
विषफल अभिप्राय द्वारा विषय भोगों को प्राण घातक ( मुक्ति में बाधक ) कहा गया है। धन्ना
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