Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 119
________________ मधुबिन्दु - अभिप्राय का विकास / 109 में मन्धुबिन्दु अभिप्राय उदाहरण-स्वरूप प्रस्तुत है। अर्थवत्ता : मधुबिन्दु अभिप्राय की अर्थवत्ता सांसारिक जीवन के यथार्थ-दर्शन से सम्बन्धित है। जहाँ कहीं भी यह दृष्टांत प्रयुक्त हुआ है, मूल रूप में वहाँ सांसारिक दुःख और सुख को यथावत् उद्घाटित किया गया है। वैसे यह अभिप्राय आध्यात्मचिंतन से अधिक सम्प्रक्त लगता है, किन्तु मूलरूप में इसका सम्बन्ध मानवीय असद् प्रवृत्ति से जुड़ा हुआ है। मानव जीवन का उत्थान - पत्तन सद्-असद् मूलवृत्तियों की प्रकाशन- स्थिति पर आधारित है। इस अभिप्राय द्वारा तृष्णा असद्दृति उभर कर सामने आई है, माया, आसक्ति आदि जिसके अपर नाम हैं। संसार भ्रमण का मूल कारण तृष्णा है, इस बात को प्रायः सभी भारतीय दर्शनों ने स्वीकार किया है। तृष्णा के वशीभूत होकर जीव मोह का बन्ध करता है और वास्तविक दुःखों के न गितना हुआ क्षणिक सुख में फंसा रहता है। प्रस्तुत अभिप्राय 'संसार में दुखों की अनन्त राशियों में सुख राई के एक कण के बराबर हैं इस सत्य को अजागर करता है तथा संसार-संकटों से छूटने के प्रयत्न जैसी सद्वृति पर तृष्णा असवृति के दबाव का प्रदर्शन भी । मधुबिन्दु अभिप्राय की मूल कथा से उसकी अर्थवत्ता स्पष्ट होती है। प्राकृत कथाओं में इस अभिप्राय का प्रारम्मि रूप इस प्रकार है: अनेक देशों में विचरण करने वाला कोई पुरुष सार्थ से विलग होकर वन में प्रविष्ट हुआ और चोरों के द्वारा लूट लिया गया। वह अकेला पुरुष पथभ्रष्ट होकर इधर- उधर घूम रहा था। एक मदोन्मत्त वनहस्ति ने उसका पीछा किया। उस पुरुष ने भागते हुए तृण-लताओं से आच्छादित एक पुराने कुंए को देखा। कुंए के तट पर विशाल बट का एक वृक्ष था। उसकी शाखाओं से जटाएं कुंए में प्रवृष्ट थीं। वह भयातुर पुरुष प्रारोह को पकड़कर कुंए में लटक गया। नीचे देखने पर उसे दिखाई दिया कि महाकाल के सदृश एक. अजगर मुंह फाड़े उसे खाने के लिए तैयार है। उस पुरुष ने तिरछे देखा कि कुंए की दवालों पर चारों ओर चार भीषण सर्प उसे खाने के लिए स्थित हैं। प्रारोह के ऊपरीभाग को दो काले और सफेद चूहे काट रहे हैं। हाथी ने आकर अपनी सुंड से उस वृक्ष को हिलाया । उस वृक्ष पर मधुमक्खियों का एक बड़ा छत्ता था । वृक्ष हिलने से मधुमक्खियां उड़ीं और उस पुरुष के शरीर से चिपक कर काटने लगीं। तभी उस छत्ते से मधुघकी एक बिन्दु उस पुरुष के मुख में गिरी। वह उसका आस्वाद लेने लगा। इस कथानक में पुरुष संसारी जीव है, सघन वन जन्म-जरा- रोग मरण से संश्लिष्ट संसार । वनहस्थी मृत्यु है, कुंआ मनुष्य जन्म तथा देवगति, अजगर तिर्थन्च और नरक गति का प्रतीक है, चार सर्प दुर्गतियों में ले जाने वाले क्रोध मान-माया - लोभ चार कषाय हैं। प्ररोह जीवन - आयु है और श्वेत कृष्ण मूषक दिन-रात हैं, जो निरन्तर आयु को क्षीण करते हैं। वृक्ष कर्मबन्धन का कारण, अज्ञान व मिथ्यात्व का प्रतीक है। मधु का बिन्दु पांचों इन्द्रियों का सुख है, तथा मधुमक्खियां शरीर में होनेवाली व्याधियां हैं। 2 उत्स : मधुबिन्दु अभिप्राय का प्रयोग संसार- दर्शन के लिए सर्वप्रथम कब किया गया तथा इसका Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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