Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 120
________________ 110/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन प्रारंभिक स्वरूप क्या था, इस पर किसी ने विचार किया है, यह ज्ञात नहीं। विन्टरनित्स ने हिस्ट्री आफ इन्डियन लिटरेचर के प्रथम भाग पृ.40 में इसके विषय में थोड़ी चर्चा की है। उन्होने ई. कुह के इस मत का खण्डन करते हुए कि यह दृष्टान्त मूल्रूप से बौद्ध धर्म का है, इसे जैन एवं अन्य भारतीय आध्यात्मिक विचारधाराओं से सम्बन्धित माना है। यह हो सकता है कि दृष्टान्त का बौद्धस्प ही सर्व प्रथम पाश्चात्य-साहित्य में प्रविष्ट हुआ हो। इससे स्पष्ट है कि मधुबिन्दु दृष्टान्त बौद्ध और जैन साहित्य की रचना के पूर्व ही भारतीय साहित्य में विद्यमान था। विन्तरनित्स ने इसी जगह एक सूचना यह भी दी है कि जर्मन विद्वान् इ. कुह ने विश्वसाहित्य का अध्ययन कर इस दृष्टान्त के सन्दर्भ खेजने का प्रयत्न किया है। ब्राहमण, महाभारत, जैन, बौद्ध, मुसलमान और यहूदी कथाओं के साथ इसकी तुलना की है। यही सूचना जैकोबी द्वरा सम्पादित हेमचन्द्र के परिशिष्टपर्व पृ. 22 में दी गयी है। मधुबिन्दु दृष्टान्त का प्रारम्भिक स्प महाभारत का है। धुतराष्ट्र के शोक का निवारण करने के लिये विदुर ने इस दृष्टान्त द्वारा सघन संसार का चित्र उपस्थित किया है। दृष्टान्त को प्रारम्भ करते समय विदुर ने यह बात स्वीकार की है कि मैंगहन वन के उस स्वरूप का वर्णन करता हूँ जिसका निरूपण बड़े बड़े महर्षि करते हैं। उनका यह कथ्य सूचित करता है कि महाभारत के पूर्व भी इस दृष्टान्त का उपयोग होता रहा है। उपनिषदों में यद्यपि मधुबिन्दु का यह स्वस्प तो नहीं मिलता, किन्तु मधु और मधुमक्खियों को उपमा का विषय अवश्य बनया गया है। आदित्य की मधुरुप में कल्पना', सद्-आत्मा ही सबका मूल है जैस मधुरस इत्यादि। हो सकता है, संसारसुख की मधुबिन्दु द्वरा उपमा देने की प्रेरणा यहीं से उद्भूत हुई हो। बाद में क्रमशः वह कथा का रूप धारण करती गयी हो। बौद्ध कथाओं में भी मधु-तृष्णा से सम्बन्धित अनेक कथायें महाभारत में मधुबिन्दु दृष्टान्त का कथा-मानक रूप इस प्रकार है:1. कोई ब्राहमण यात्रा कर रहा था। 2. वह दुर्गम वन के दुर्गम प्रदेश में जा पहुंचा। 3. वह बन चारों ओर से जाल से घिरा हुआ था। 4. एक भयंकर स्त्री द्वारा भुजाओं से आवेष्ठित था। 5. तृण लता आदि से ढका हुआ एक कुंआ था। 6. ब्राह्मण उस कुंए में गिर पड़ा। लताओं में फंस जाने से वह नीचे नहीं गिरा। 7. ऊपर को पैर और नीचे को सिर किये हुए वह लटका रहा। 8. कुंए की तल में एक अजगर था। 9. मुखबन्ध पर छः मुख और 12 पैर वाला काला सफेद हाथी था। 10. वृक्ष की जिस शाखा में वह लटका था उसी की टहनियों पर मधु का एक छता था। 11. मधुकी धाराओं को वह ब्राह्मण पी रहा था। 12. फिर भी वह अतृप्त था।' दृष्टान्त का यह रूप आगे चलकर परिवर्तित और परिष्कृत हुआ है। इस पर विचार करने के पूर्व इस दृष्टान्त का स्पष्टीकरण महाभारतकार ने जो दिया है, उसे देख लेना आवश्यक है। इसमें दुर्गम वन महा संसार है, दुर्गम प्रदेश संसार की गहनता और सर्प विविध रोग। सीमा पर स्थित भयंकर नारी वृद्धावस्था है, कुंआ शरीर। अजगर काल मृत्यु है, ब्राह्मण द्वरा पकड़ी हुई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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