Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 112
________________ 102/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन 45. वही, भाग, प. 401 46. 'सच्चक्रिया' (जरनल ऑव द रायल एशियाटिक सोसायटी. जुलाई 1917, पृ. 427-467) 47. आवश्यकचूर्णि 2, पृ. 2027, मावादेव जातक (9) सोम जातक (525), निमि जातक (541), 'ग्रे हेयर मोटिफ' ओरियन्टल जर्नल, भा. 36 पृ. 54-861 48. 'जैनागम सहित्य में भारतीय समाज' पृ. 382 49. उत्तराध्ययनटीका 18, 233 । 50. वही. 9. पृ. 133 51. अन्तकृद्दशाग व. 6 अ.3, जैनागम निदेर्शिका पृ. 492 ! 52. नायाधम्मकहा, 7, कुछ रूपान्तर के साथ मूलसर्वास्त्तिवाद में तथा बाइबिल (सैन्ट मैथ्यू की सुवार्ता 25) में भी यह कहानी प्राप्त होती है। - दो हजार वर्ष पुरानी कहानियां पृ. 7। 53. उत्तराध्ययन 7, 14-15। 54. विषवन्त जातक (69) 1.4021 55. उत्तराध्ययनटीका, पृ. 27-821 56. जैन कहानियां भाग 2। 57. ज्ञाताधर्मकथा, 151 58. फल जातक (54) 1.3511 59. उत्तराध्ययन सुखबोधा टीका, गा. 3-451 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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