Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 102
________________ 92/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन 6. अध्यात्म-चिन्तन से सम्बद्ध अभिप्रायः- कथाओं में अनेक अभिप्राय अध्यात्म-चिन्तन से सम्बद्ध होते हैं। मानव की सद्-असद् वृत्तियों के प्रकाशन के अतिरिक्त उसके चरम और उत्कर्ष का प्रयत्न भी भारतीय कथाओं द्वारा किया गया है। विषय-भोग और वमन, बैराग्य के कारण, कर्मों का फल, पुनर्जन्म, जीवन की क्षण-भंगुरता, संसार-भ्रमण और मुक्ति, व्रतों का पालन, मनुष्य जीवन की दुर्लभता आदि का प्रतिपादन इस अभिप्राय के अन्तर्गत है। इस अभिप्राय-वर्गीकरण के अन्तर्गत कथाओं में प्रयुक्त प्रायः सभी अभिप्राय आ जाते हैं। कुछ यदि इस परिधि के बाहर भी होते हैं तो उनके अन्तरंग को जानने का प्रयत्न होना चाहिये, तब उन्हें अलग वर्गीकृत किया जा सकता है। यथा- पशुओं व पक्षियों से सम्बन्धित जितने अभिप्राय हैं उन्हें कुत्ते का महमान, बिल्ली की चाल, होशियार लोमड़ी, जिद्दी बकरे, पंडित तोता, लेटी हुई बकरी, कौआ कोयल आदि नाम देने की अपेक्षा इनके मानवीयकरण को ध्यान में रख कर मानव की उस कल्पना और सम्भावना को सामने लाने का प्रयत्न होना चाहिये जिसके द्वारा उसने अपनी अपूर्णता को पूर्णता प्रदान की है। यही दृष्टि अमानवीय शक्तियों से सम्बद्ध अभिप्रायों के वर्गीकरण के समय होनी चाहिए। यक्ष, राक्षस, व्यन्तर, देव आदि ने क्या कार्य किये यह उतना महत्व का नहीं है, जितना यह कि इनके द्वारा मानव के आत्म-सरक्षण की प्रवृत्ति कितनी हुई है। अभिप्रायों के प्रयोग की प्रक्रिया : अभिप्राय-अध्ययन के समय उनके प्रयोगों पर विचार करना बहुत जरूरी है। क्योंकि एक अभिप्राय विभिन्न कथाओं में अनेक ढंग से प्रयुक्त हुआ मिल सकता है। अभिप्रायों के प्रयोग पर विचार करने से अभिप्राय का मूल स्वरूप उसकी अर्थवत्ता, प्रसार-यात्रा स्पान्तरित रूप तथा विविध रूपों के पारस्परिक सम्बधों पर प्रकाश पड़ता है। इससे सम्बन्धित कथाएं ही स्पष्ट नहीं होतीं, अपितु विभिन्न कालों के सांस्कृतिक पक्ष भी उजागर होते हैं। उदाहरण स्वरूप सांसारिक दुख और जीवन के अभिप्राय को लें। इसका प्रयोग ब्राह्मण, महाभारत, जैन, बौद्ध ईसाई, मुस्लिम कथा-साहित्य में हुआ है। प्रारम्भ में नाना दुःखों से युक्त एक कुए में मृत्यु से भयभीत पुरुष को स्थित दिखा कर उसे मधु के बिन्दु में आसक्त बतलाकर सांसारिक दुख और जीवन का यथार्य प्रतिपादित कया गया है। आगे चल कर इसी का स्वरूप बदल गया है। सांसारिक दुःखों के परिज्ञान के लिए कुआ न होकर रोग, बुढ़ापा और मृत्यु को साधन बनाया गया है। मोहासक्ति के लिए राजपाट कारण बना है। प्राकृत कथाओं में निर्जन द्वीप के विविध कष्ट सांसारिक दुखों के प्रतीक हैं और मोहासक्ति कादम्बरी फलों द्वारा अभिव्यक्त की गई है।" आगे इस अभिप्राय के और भी रूपान्तर हुए हैं।12 अब यदि इस अभिप्राय को अभिव्यक्त करने वाले उपकरणों-कूपनर, मधुविन्दु आदि को अभिप्राय मान लिया जाय तो आगे चलकर हो सकता है इनका अस्तित्व भी न मिले, जबकि सांसारिक दुख और जीवन की व्याख्या हमेशा होती रहेगी, भले उसकी अभिव्यक्ति के उपकरणों में भिन्नता हो। अतः अभिप्रायों के मूल तक पहुँचने और उनके सही एवं पूर्ण अध्ययन के लिए अभिप्रायों के प्रयोग की प्रक्रिया का परिज्ञान आवश्यक है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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