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पालि- प्राकृत कथाओं के अभिप्राय/91 धन के लिए मित्र का वध, धरोहर का नकारना, आदि अभिप्राय 'विश्वासघातं असद्वृत्ति अभिप्राय के अन्तर्गत रखे जा सकते हैं। इस प्रकार के वर्गीकरण में प्रयत्नलाघव तो है ही, इससे अभिप्रायों की परम्परा अक्षुण्ण बनी रहती है। पराक्रम, विवेक, मित्रता, वात्सल्य, उपकार, सहनशीलता, विद्या आदि सद् अभिप्राय एवं कायरता, अज्ञान, बैर घृणा, कृतघ्नता, क्रोध, काम, लोलुपता आदि असद् अभिप्राय हमेशा हर साहित्य में विद्यमान मिलेंगे, जबकि सभी को वश में करना, मित्र को धन को लिए धोखा देना आदि घटनाएँ देश-काल से सीमित हो सकती हैं।
(ब) किन्हीं कथाओं में यह देखा जाता है कि सद्वृत्ति द्वारा असद्वृत्ति पर विजय प्राप्ति के प्रयत्न किये जाते हैं। ऐसी कथाओं के अभिप्राय अलग वर्गीकृत किये जा सकते हैं। उदाहरण के लिए एक प्रसंग लिया जा सकता है। सौतेली मां द्वारा अनेक बार अपने रूपवान एवं पुत्र से समागम की याचना की गयी है । पुत्र द्वारा इसे न स्वीकारने पर उस पर बलात्कार का झूठा इल्जाम लगाया गया है। किन्तु अन्त में भेद खुलने पर सौतोली मां द्वारा या तो क्षमा मांगी गई है या उसे राजा द्वारा दण्ड दिया गया है। यहाँ या इससे सम्बन्धित कथाओं में काम प्रवृत्ति पर शील की विजय दिखायी गयी है। इसी तरह क्रोध- क्षमा बैर-मित्रता, अधर्म-धर्म आदि के भी प्रसंग कथाओं में आये हैं। इन सब को 'सद्की असद् पर विजय अभिप्राय के अन्तर्गत रखा जा सकता है।
जिन अभिप्रायों का सद्-असद् वृत्तियों से सीधा सम्बन्ध न हो उन्हें विशेष अभिप्रायों के रूप में अलग वर्गीकृत किया जा सकता है। यथा
2. परीक्षण अभिप्रायः- इसके अन्तर्गत सत्यपरीक्षा, बुद्धिपरीक्षा, साहसपरीक्षा, शर्त, पहेलियां, आदि परीक्षाओं से सम्बन्धित प्रसंग रखे जा सकते हैं। परीक्षण अभिप्राय के मूल में किसी भी प्रकार की बाधाओं की चिन्ता न करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचने की भावना है। पालि-प्र - प्राकृत कथाओं में अनेक स्थानों में इसका प्रयोग हुआ है। बुद्ध के साथ मार का संघर्ष और जैन तपस्वियों के 22 परीषह उदाहरण स्वरूप द्रष्टव्य हैं।
3. निषेध अभिप्रायः- कथाओं में वर्जन के अनेक प्रसंग आते हैं। यौन-वर्जन, खान-पान वर्जन, स्पर्श-वर्जन दिशा-वर्जन आदि। इन सब का एक ही भाव होता है- नायक के सुषुप्त पराक्रम, विवेक को जाग्रत करना। इसके द्वारा उसके चारित्र का उत्कर्ष दिखाना । इस अभिप्राय का सीधा सम्बन्ध मनोविज्ञान से है, अतः इसे अलग रखना ही ठीक होगा। इस अभिप्राय द्वारा संघर्ष की मनोवैज्ञानिक व्याख्या की गयी है।
4. सहायक अभिप्राय:- मानव की सद्वृत्तियों के विकास के लिए कथा में अनेक सहायक अभिप्रायों का भी प्रयोग हुआ है। स्वप्नप्रदर्शन, भविष्यवाणी, आकाशवाणी, विद्याधर व यक्षों द्वारा सहायता, देवों के अलौकिक कार्य आदि इस अभिप्राय से सम्बन्धित हैं। इस अभिप्राय द्वारा मानवीय अपूर्णता को प्रगट किया गया है। हर तरह से मानव सशक्त होते हुए भी कभी न कभी ऐसी स्थिति को प्राप्त होता है, जब उसे अन्य की सहायता लेनी पड़ती है।
5. बाधक अभिप्रायः - इसका उपयोग असद् वृत्तियों पर विजय प्राप्त करने के लिए कथाओं में किया गया है। कथा का नायक साधारण तरीके से सहज ही यदि किसी राजकुमारी को प्राप्त कर ले तो उसके चरित्र की कोई विशेषता नहीं रहती और कथा भी समाप्त हो जाती है। अतः उसके रास्ते में प्राकृतिक व अमानवीय अनेक तरह की बाधक शक्तियों को उपस्थित किया जाता है, जिन पर विजय प्राप्त कर नायक लक्ष्य की प्राप्ति करता है।
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