Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 98
________________ एकादश पालि - प्राकृत कथाओं के अभिप्राय कथा साहित्य की सार्वजनीन लोकप्रियता के कारण बौद्ध एवं जैन धर्म के प्रवर्तकों ने भी सहस्रों लोक कथाओं एवं आख्यानों का उपयोग अपने गूढ़विचारों और गहन अनुभूतियों को सरलतम रूप में जनमन तक पहुँचाने के लिए किया है। अनेक नूतन कथाओं - आख्यानों का सृजन भी । पालि कथा - साहित्य में जातक कथाओं के अतिरिक्त दीघनिकाय के ब्रह्मजालसुत्त की कथा - सूची लोक कथाओं के वास्तविक विषय और व्यापक क्षेत्र का परिचय देती है। प्राकृत-साहित्य में भी लोक-कथाओं का खुलकर स्वागत हुआ है। किन्तु प्राकृत कथाकारों ने नवीन कथा - साहित्य की समृद्धता में जो योगदान दिया वह विस्तार, विविधता और बहुभाषाओं के माध्यम की दृष्टि से भारतीय साहित्य में अद्वितीय है। 1 कथा - साहित्य क्या भारतीय साहित्य की प्रत्येक विधा का अध्ययन पाश्चात्य विद्वानों के प्रयत्न से गतिशील हुआ । किन्तु इससे एक ओर जहाँ उपेक्षित भारतीय साहित्य पठन-पाठन, अध्ययन - अध्यान के योग्य हुआ, वहाँ उसके आलोचना के क्षेत्र में अनेक भ्रांतियाँ भी पनपती गयीं । पाश्चात्य विद्वानों को प्रामाणिक मान कर भारतीय अध्येताओं ने विषय की गहराई में जाने का प्रयत्न बहुत कम किया है ! सम्बन्धित प्रयोगों में अनुकरण की प्रवृत्ति अधिक दिखलायी देती है । फलस्वरूप मौलिक चिन्तन अधिक नहीं उभर सका। (उभरने के लिए अब इस अन्धानुकरण से संघर्ष अपेक्षित हो गया है।) पालि प्राकृत कथा साहित्य के अन्तरंग तक पहुँचने के लिए उनके कतिपय अभिप्रायों (motifs) पर एक चिन्तन यहाँ प्रस्तुत है। अभिप्राय-अध्ययन : कथाओं में निहित अभिप्रायों का संग्रह कर उनके उत्स का पता लगाना ही कथ्य को हृदयगंम करने का सही रास्ता है। किसी भी कथा के पीछे सांस्कृतिक आधार क्या था, जब तक इसका पता न लगा लिया जाय, तब तक कथा के माध्यम से कथाकार क्या कहना चाहता है, स्पष्ट नहीं होता । कथा के सांस्कृतिक आधार तक हम अभिप्राय-अध्ययन द्वारा पहुँच सकते हैं। क्योंकि कथाकार अपने कथ्य की अभिव्यक्ति के तद्रूप अभिप्रायों का ही प्रयोग कथा में करता है। अभिप्राय कथा का अपरिवर्तनीय अंग है। कथा की शैली, कथानक - संगठना, भाषा आदि में क्रमशः परिवर्तन होते रहते हैं, किन्तु सुदीर्घ परम्परा के बाद भी कथा का अभिप्राय नहीं बदलता । अतः अभिप्राय-अध्ययन हमें कथा के जन्म तक ले जाने की क्षमता रखता है । कथाओं का जनम उतना ही प्राचीन है, जितना मानव । अतः अभिप्राय-अध्ययन का अर्थ हैमानव विकास के इतिहास का अध्ययन । मानव ने अपने अस्तित्व की रक्षा तथा जीवन को सुखी और उन्नत बनाने के लिए जितने प्रकार के सामाजिक संघर्ष किये हैं उनके स्मृति चिन्ह इन अभिप्रायों में यत्र-तत्र बिखरे मिलते हैं। 2 मानव की एक विशेष प्रवृत्ति है- ऊपर उठने की । वह अपनी सब बाधाओं को भौतिक और मानसिक रूप से विजित देखना चाहता है। अतः मानव-मन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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