Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 97
________________ प्राकृत साहित्य में बाहुबली कथा/87 उसके त्यागने में है। बाहुबली के विशालता के मोटिफ ने उन्हें ऐसे तपस्वी बनाया कि आज साहित्य में ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं है कि जिसके शरीर में और धरती की मिट्टी में कोई अन्तर न रहा हो। प्राणी और वनस्पति का आश्रय किसी का शरीर बन जाय तो इससे बड़ा वात्सल्य भाव और क्या होगा। विशालता के इस मोटिफ ने बाहुबली की प्रतिमाओं को भी प्रभावित किया। गोम्मटेश्वर बाहुबली की मूर्ति ही विशाल नहीं है, अपितु उसकी स्थापना एवं उसका आयोजन भी विशालता के शिखरों को छूता रहा है। बाहुबली का कथानक जैन दर्शन में प्रसिद्ध चार कषायों का प्रतीक बना हुआ है। भारत की दिग्विजय-आकांक्षा लोभ को, युद्ध-नीति का उल्लंघन करना माया को, चक्र का प्रहार करना क्रोध को तथा बाहुबली को केवलज्ञान न होना मान को प्रकट करनेवाली घटनाएँ हैं। इन कषायों को जीतने का उदाहरण है- बाहुबली का व्यक्तित्व। साहित्य में एक बहुप्रचलित मोटिफ है- एक का अपकर्ष, दूसरे का उत्कर्ष । राम-रावण, कृष्ण-कंस पाण्डव-कौरव आदि अनेक ऐसे युग्म साहित्य में प्रसिद्ध है। भरत-बाहुबली के कथानक के विकास में भी यही मोटिफ गतिशील रहा है। यदि सूक्ष्मता और तुलनात्मक दृष्टि से इस बाहुबली कथानक पर अनुसंधान किया जाय तो कथासाहित्य के विकास पर नया प्रकाश पड़ सकता है। 4 सन्दर्भ 1. द स्टोरी आफ बाहुबली, सम्बोधि, भागठ, अक-3-4, 1978 2. मुनि पुण्यविय, वसुदेवहिण्डी, पार्ट । भावनगर, 1931 3. जयन्ती चरितवृत्ति (मलयप्रभसूरी) लींच, महसाना, वि.सं. 2006 4. जैन प्रेमसुमन, 'बाहुबली इन प्राकृत लिटरेचर' नामक लेख, गोम्टेश्वर कोमेमोरेशन वालुम, 1981, पृ.76 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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