Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 95
________________ प्राकृत साहित्य में बाहुबली कथा/ 85 में यह कहा गया है कि इन देनों के बीच 12 वर्ष तक घमासान युद्ध हुआ। किन्तु अन्य सभी ग्रन्थों में इस युद्ध को हिंसात्मक होने से रोका गाया है। अहिंसात्मक युद्ध का प्रस्ताव कहीं इन्द्र या दूत के द्वारा आया है तो कहीं मन्त्रियों द्वारा। किन्तु पउमचरियं, आवश्यकचूर्णि आदि में स्पष्ट रूप से अहिंसात्मक युद्ध का प्रस्ताव बाहुबली के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। भणओ य बाहुबलिणा, थक्कहरो किं वहेण लोयस्स। दोण्हं पि होउ जुहा, दिट्ठीमुट्ठीहिं रणमझे।। (पउमचरियं. 4,43) ताहे ते सव्वबलेण दो वि देसते मिलिया, ताहे बाहुबलिण भणिय-किं अणवराहिणा लोगेण मारिएण ? तुम अहं च दुयगा जुज्झामो। - ( आवश्यकचुर्णि, पृ210) बाहुबली के व्यक्तित्व की विशालता का प्रमुख अंग है- शक्ति में समर्थ होते भी जनक्षय को रोकने का प्रयत्न करना। लोगों की स्वाधीनता की रक्षा, उनके प्राणों की रक्षा करने की भावना ने बाहुबली के व्यक्तित्व को बहुत ऊंचा उठाया है। अहिंसात्मक युद्ध के स्वरुप के विषय में भी ग्रन्थों में मतभेद है। कहीं दृष्टि-युद्ध और मल्लयुद्ध का उल्लेख है तो कहीं इसमें जल-युद्ध को भी जोड़ दिया गया है। जिनदासगणि महत्तर ने इसमें वागयुद्ध को और जोड़ दिया है। कहीं दण्डयुद्ध को जोड़कर पाँच युद्धों का वर्णन किया गया है। इस सबका आशय यही है कि भरत और बाहुबली के बीच ऐसे युद्ध हो जो उनकी जय-पराजय का निर्णय कर दें तथा जिनसे हिंसा भी न हो। दूसरी बात, इन युद्धों के द्वारा बाहुबली के शारीरिक गुणों के उत्कर्ष को भी प्रकट करना कथाकारों का उद्देश्य हो सकता है। इन युद्धों में विजयी होने पर भी बाहुबली नैतिक आचरण की प्रतिष्ठा बनाये रखते हैं, जबकि भरत समझौते से डगमगा जाते हैं। (iii) चक्रका का प्रहारबाहुबली की कथा के सभी युद्ध-रुपों में जब भरत बाहुबली से पराजित हो जाते हैं तो वे क्रोध में आकर बाहुबली पर चक्र से प्रहार करते हैं। युद्धनीति का स्पष्ट रूप से यह उल्लंघन है। इस घटना द्वारा भरत का व्यक्तित्व बहुत बौना हो जाता है। बाहुबली के लिए यह घटना जीवन के दिशा-परिवर्तन का केन्द्रबिन्दु बन जाती है। बैराग्य उत्पत्ति के लिए यद्यपि प्राकृत कथाओं में कई मोटिफ्स प्रयुक्त हुए हैं किन्तु चक्र-प्रहार का यह मोटिफ बाहुबली की कथा को विशिष्ट बना देता है। परमचरियं एवं अन्य प्राकृत ग्रन्थों में इस अवसर पर बाहुबली द्वारा प्रकट किये गये उद्गार भरतीय साहित्य की अमूल्य निधि हैं। मानव व्यक्तित्व के कई पक्ष इससे उजागर होते हैं। भौतिक विजय को तुच्छ गिनकर बाहुबली आध्यात्मिक विजय के लिए अग्रसर हो जाते हैं। मर्यादा तोड़ने वाले की अपेक्षा मर्यादा की रक्षा करने वाला हमेशा बड़ा होता है। इस दृष्टि से बाहुबली का व्यक्तित्व भरत से ऊंचा उठ जाता है। (iv) केवलज्ञान में विलम्बबाहुबली की तपश्चर्या का विस्तृत वर्णन प्राकृत ग्रन्थों में है। पउमचरियं में बाहुबली द्वारा केवनज्ञान प्राप्ति में किसी विघ्न का उल्लेख नहीं है। किन्तु आगे के कथाकारों ने बाहुबली जैसे विजेता के मानस को और अधिक शुद्ध करने के लिए उनकी मान-कषाय को एक प्रतीक द्वारा तिरोहित करने का प्रयत्न किया है। प्राकृत ग्रन्थों के वर्णन के अनुसार, बाहुबली भगवान् ऋषभदेव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128