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84 / प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन
पत्नी सुनन्दा के पुत्र थे। उनकी सहोदरा बहिन का नाम सुन्दरी था। पिता ऋषभ ने अपनी अन्य सन्तानों की तरह बाहुबली को भी शिक्षा प्रदान की। उन्हें विशेषरूप से चित्रकला एवं ज्योतिषविद्या का ज्ञान कराया। ऋषभदेव ने जब अपने पुत्रों को राज्य का वितरण किया तो बाहुबली को तक्षशिला का राज्य प्राप्त हुआ।
भारत को जब चक्ररत्न की प्राप्ति हुई तो उन्होंने दिग्विजय करते हुए तक्षशिला में बाहुबली को भी जीतना चाहा। युद्ध के लिए प्रस्तुत होने पर बाहुबली ने दोनों के परस्पर युद्ध का प्रस्ताव रखा ताकि सेना के अन्य लोगों के प्राण बच सकें। इस अहिंसक युद्ध में पराजित होने पर भरत ने बाहुबली पर चक्र का प्रहार किया। किन्तु बाहुबली पर उसका असर नहीं हुआ । इस नीति-विरोधी घटना को देखकर बाहुबली ने राज्यपाट छोड़कर दीक्षा ले ली। किन्तु कठिन तपश्चर्या करने पर भी मान कषाय के कारण उन्हें जब केवलज्ञान नहीं हुआ तो ब्राह्मी ने आकर उन्हें समझाया । तदनन्तर बाहुबली को केवलज्ञान होकर मोक्ष हो गया। 2
लगभग चौथी शताब्दी के अन्य प्राकृत ग्रन्थ पउमचरियं में बाहुबली की कथा बहुत संक्षेप में है। इसमें भरत और बाहुबली के आपस में भाई होने का कोई उल्लेख नहीं है । ग्रन्थकार कहता है कि तक्षशिला में महान बाहुबली रहता था। वह सर्वदा भरत राजा का विरोधी था और उसकी आज्ञा का पालन नहीं करता था:
तक्खसिलाए महप्या, बाहुबली तस्स निच्चपडिकूलो।
भरहनरिन्दस्स सया, न कुणइ आणा - पणामं सो ।। 4-38
इस ग्रन्थ में बाहुवली की दीक्षा के बाद मान अहंकार होने का भी कोई उल्लेख नहीं है। दीक्षा लेते ही उन्हें केवलज्ञान हो जाता है। 'जम्बुद्दीवपण्णत्ति में भी ऋषभ और भरत - बाहुबली के पारिवारिक सम्बन्धों का उल्लेख नहीं है। अतः ज्ञात होता है कि बाहुबली की कथा का विकास कई परम्पराओं में अलग-अलग हुआ है। किन्तु इस कथा के सभी रूपों में निम्नांकित घटनाएँ समान हैं। यद्यपि उनके प्रस्तुतिकरण में भिन्नता है।
प्रमुख कथा-बिन्दु :
(i) स्वतन्त्र राज्य
बाहुबली तक्षशिला के राजा थे । कुछ ग्रन्थों में उल्लेख है कि यह राज्य उन्हें अपने पिता ऋषभ के द्वारा दिया गया था, तो कुछ स्रोतों का कहना है कि बाहुबली वहाँ के स्वतन्त्र राजा थे, जिनकी भरत से मित्रता नहीं थी । जम्बुद्वीप-प्रज्ञप्ति के अनुसार बाहुबली को बहली का राज्य दिया गया था, जो तक्षशिला के समीप था। बाहुबली की भरत के दूत के साथ जो बातचीत प्राप्त होती है, वह प्राचीन राजनीति की अमूल्य निधि है । उसमें दो स्वतन्त्र राजाओं के कर्तव्य एवं अधिकारों का स्पष्ट उल्लेख है। भले वे एक ही बाप के दो बेटे क्यों न हों। बाहुबली ने अपनी भूमि की स्वाधीनता की रक्षा के लिए जो संघर्ष किया है, वह विश्व-साहित्य में अमर घटना है। जन-सामान्य में बाहुबली की प्रसिद्धि का यह प्रमुख कारण है।
(ii) अहिंसात्मक युद्धनीति-:
बाहुबली के चरित्र की महानता उनके द्वारा अपनायी गयी अहिंसात्मक युद्धनीति है । भरत और बाहुबली के युद्ध का प्रसंग सभी कथाकारों ने उपस्थित किया है। केवल 'भरतेश्वरबाहुबलीवृत्ति
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