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82/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन
11. दिल्ली की प्रति में इस मगल वाक्य के स्थान पर कवि परिचय का कड़वक 21 एवं घत्ता 21 दिया
हुआ है, जो इस उज्जैन प्रति में ग्रन्य के प्रारम्भ में कड़वक 2 में दे दिया गया है। 12. यह घत्ता दिल्ली प्रति में इस प्रकार है
जं हीणाहिउ मत्त-विहूणिउ साहिउ गयउ अयाणि।
तं मज्झु खमिव्वउ लहु दय किज्जउ साहु लोउग्गमणि ।।22।। 13. इति णेमिणाह चरिए अबुहकइ रयणसुअ लक्खमणेण विरइए भव्ययणमप्याणदे णेमिकुमार संभो गाम
पढमो परिच्छेओ समत्तो। 14. तहिं णिवसइ रयण् गरुह भव्वु,परणारिसहोयरु गलियगव्बु । 15. लखमाणा मई तहिं तणउ पुत्तु, लखमएव णामें रिसायहिंविरत्तु । 16. संधि 1 कड़वक 2 की प्रशस्ति । 17. संधि 4 कड़वक 22 की प्रशस्ति। 18. कम्मक्खइ णिमित्तु आहासिउ,अमुणतिण पमाणु पयासिउ।
संधि 4, कड़वक 22 19. संधि 1, कड़वक 3 20. छारहो कज्जइं गोसीर दहइ, आसणा णिमित्त सिल-कधि वहइ।
गुंजाहलु लइ माणिक्कु दइ, आयहो णिमित्तु विसहलु असेइ। बिक्किणइ कोडि कअडिय अयाणु, पइसइ हविचारह सीय-ठाणु । आरुहइ खरहो मिल्लिवि तुहारु, जो इंदिय-सुख माणइं गमारु।।
- संधि 3, कड़वक 9
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