Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 24
________________ 14/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन के निर्वाण के अवसर पर देवताओं द्वारा प्रकाश किया गया था,24 जो वर्तमान में दीपावली उत्सव का आधार है। महावीर की जीवनी पर विस्तृत प्रकाश पड़ चुका है। भरत चक्रवर्ती :आगम ग्रन्थों में भरत चक्रवर्ती की कथा जम्बुद्दीवपण्णति में कुछ विस्तार से है। स्थानांग एवं समवायांगसूत्र में इस कथा के छुटपुट सन्दर्भ ही आये हैं।26 भरत चक्रवर्ती के सम्बन्ध में यद्यपि समवायांग एवं परवर्ती जैन साहित्य में यह उल्लेख है कि वे ऋषभदेव के पुत्र थे तथा बाहुबली उनका भाई था जिनसे उनका युद्ध भी हुआ था।27 किन्तु जम्बूदीपप्रज्ञप्ति के इस अंश में यह कहीं उल्लेख नहीं है कि भरत, ऋषभदेव के पुत्र थे तथा उन्हें ऋषभदेव ने अपना राज्य सौंपा था। इसी तरह बाहुबली के साथ भी भरत का जो अहिंसक युद्ध हुआ था उसका वर्णन भी आगम के इस कथांश में नहीं है। 3-4थी शताब्दी में विमलसूरिकृत ‘पउमचरियं नामक प्राकृत ग्रन्थ में भी भरत और बाहुबली को दो प्रतिपक्षी राजाओं के रूप में चित्रित किया है, दो भाइयों के रूप में नहीं।28 अतः यहाँ यह चिंतन करने की गुंजाइश है कि ऋषभ, भरत और बाहुबली इन तीन प्रभावशाली व्यक्तियों का आपसी सम्बन्ध सम्भवतः चौथी शताब्दी के बाद साहित्य-जगत् में स्थापित किया गया है।29 वैदिक साहित्य में ऋषभ एवं भरत के पारिवारिक सम्बन्ध की सूचनाएँ भी पौराणिक युग के साहित्य में ही मिलती हैं। प्राचीन बौद्ध साहित्य में इस प्रकार के उल्लेख ही नहीं हैं। अतः यह गवेषणा का विषय है कि ऋषभ, भरत और बाहुबली का पारिवारिक सम्बन्ध कब से और किन कारणों से भारतीय साहित्य में प्रविष्ट हुआ है।30 'धम्मकहाणुओगों में भरत चक्रवर्ती का वर्णन चक्ररत्न की उत्पत्ति से प्रारम्भ होता है। आगे उसकी दिग्विजय का विस्तार से इसमें वर्णन है। मागधतीर्थ, दक्षिण दिशा, प्रभासतीर्थ (पश्चिम) तक सिन्धु नदी के तटवर्ती प्रदेशों तक भरत ने विजय यात्रा की। वैताद्य पर्वत पर भरत की किरातराज के साथ जो मुठभेड़ हुई उसका इसमें विस्तार से वर्णन है। किरात और नागकुमार के आपसी सहयोग का भी इसमें वर्णन है। वापिस अयोध्या लौटते समय नमि-विनमि के साथ घमासान युद्ध का वर्णन साहित्यिक प्राकृत में किया गया है। अयोध्या लौटने पर भरत का महाराज्याभिषेक किया गया31 और विजय-महोत्सव मनाया गया।32 इसके बाद भरत के शासन करने का वर्णन है। तदुपरान्त दीक्षा प्राप्त कर निर्वाण प्राप्त करने का।33 यहाँ भी भरत ने ऋषभ से दीक्षा प्राप्त की अथवा उनसे कहीं जाकर वह मिला, ऐसा कोई उल्लेख नहीं है। जबकि परवर्ती साहित्य में भरत की कथा बहुत विकसित हो चुकी है।34 इस देश का नाम इसी भरत चक्रवर्ती के नाम पर भारतवर्ष प्रचलित हुआ है, इस सम्बन्ध में प्रायः विद्वान सहमत हैं।35 क्योंकि प्राचीन समय से ही इस प्रकार के उल्लेख प्राप्त है। भरत चक्रवर्ती की दिग्विजय यात्रा का ऐतिहासिक और राजनैतिक दृष्टि से भी महत्व है। कालिदास द्वारा वर्णित राजा रघु की दिग्विजय यात्रा के साथ इस प्रसंग का तुलनात्मक अध्ययन कई सांस्कृतिक तथ्य उजागर कर सकता है। अमण कथानक:आगम ग्रन्थों की सामग्री के आधार पर धम्मकहाणुओगो में लगभग 48 श्रमणों के कथानक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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