Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 32
________________ 22/प्राकृत कया-साहित्य परिशीलन श्रमणोपासक कथानक : आगम ग्रन्थों में पार्श्वनाथ के तीर्थ में दो श्रमणोपासकों एवं महावीर के तीर्थ में 21 श्रमणोपासकों के कथानक अंकित हुए हैं। यद्यपि इन तीर्थंकरों के अनुयायियों की संख्या हजारों में थी। किन्तु जिन श्रमणों ने अपनी किसी साधना व चिन्तनधारा द्वारा प्रभाव उत्पन्न किया था, उनके उदाहरण तीर्थकरों द्वारा अपने उपदेशों में दिये गये हैं। अतः ये आदर्श श्रमणोपासक हैं, जिनके जीवन से अन्य लोग भी शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। पार्श्वनाथ के तीर्थ में सोमिल ब्राह्मण ने उनसे शिक्षा ग्रहण की। किन्तु अन्य तीर्थिकों के प्रभाव से वह फिर जैन धर्म से च्युत हो गया। तापस-चर्या की वह साधना करने लगा। तब एक देव ने आकर सामिल को सही प्रव्रज्या का अर्थ बताया। सोमिल ने फिर से अणुव्रत आदि ग्रहण किये। पार्श्वनाथ के तीर्थ में प्रदेशी राजा द्वारा श्रावकधर्म स्वीकार करने की कथा विस्तार से वर्णित है। इस कथानक के प्रारम्भ में सूर्याभ नामक देव भगवान् महावीर के समक्ष उपस्थित होकर नृत्य आदि कि व्यवस्था करता है। तदुपरान्त राजा प्रदेशी का परिचय है। प्रदेशी और केशी कुमार श्रमण के बीच जीव के अस्तित्व एवं नास्तित्व के सम्बन्ध में विशद चर्चा है। कथा में संवादतत्व के अध्ययन के लिए यह कथा उपयोगी है। इस कथा का तुलनात्मक अध्ययन मिलिन्दपन्हो की कथावस्तु के साथ किया जा सकता है। आत्मा के अस्तित्व की समस्या पार्श्व, महावीर एवं बुद्ध के समय में प्रमुख समस्या थी। ___ महावीर के तीर्थ में हुए कई श्रमणोपासक प्रसिद्ध थे। ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशांग एवं भरावतीसूत्र आदि में कुछ श्रमणोपासकों के कथानक प्राप्त है। नंद मणिकार ने एक सार्वजनिक वापी का निर्माण कराया था। उस वापी में नंद की बहुत आसक्ति थी। फलतः मृत्यु के बाद वह वापी में मेंढ़क बना। मेंढ़क होते हुए भी उसने महावीर के वन्दन करने के भाव किये। किन्तु घोड़े की टाप से घायल होकर वह मेंढक मृत्यु को प्राप्त हुआ। वंदन-भावना के कारण वह देव बना। यह कथा जंतु-कथा के अध्ययन के लिए उपयोगी है। उपासकदशांगसूत्र में दश उपासकों के कथानक वर्णित हैं। आनन्द उपासक की भाँति ही बाकी 9 उपासकों की कथा को प्रस्तुत किया गया है। इन कथाओं से ज्ञात होता है कि ये उद्देश्यपूर्ण कथाएँ हैं। इन कथाओं के माध्यम से महावीर के धर्मशासन के प्रति लोगों को आकर्षित करना तथा गृहस्थ-जीवन भी साधना की भूमि है इस बात को उजागर करना इन वर्णनों का प्रतिपाद्य है। आनन्द के प्रसंग से ही ज्ञात होता है कि एक गृही साधक भी अच्छा तत्व-चिन्तक हो सकता है। गौतम जैसे श्रमण भी उसके सामने अपने अज्ञान के प्रमाद के लिए क्षमा-याचना करते हैं। महावीर की निष्पक्षता का उद्घोष भी इस प्रसंग से होता है। इन दशों कथानकों का कथा-तन्त्र प्रायः एक जैसा है। अतः कथातत्व का इनमें अभाव है। इससे यह जान पड़ता है कि उपासकदशांग की कथाएँ संभवतः अपने मूलरूप में नहीं है। ग्रन्थ के विषय का ध्यान रखकर बाद में गढ़ दी गयी है। औपपतिकसूत्र में महावीर के दो श्रावकों का प्रमुखरूप से वर्णन है। कूणिक राजा ने महावीर के उपदेश सुनने के लिए चंपानगरी को सजाया था तथा उनके उपदेश सुनने को गया था। इस प्रसंग में चंपा नगरी और महावीर का जो वर्णन किया गया है, वह साहित्यिक वर्णनों के लिए आदर्श है। कथा में काव्यात्मक वर्णन किस प्रकार उपस्थित किये जाते हैं, इसका यह प्रमुख Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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