Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 36
________________ 26/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन 55. सुत्तनिपात- अट्ठकथा, पृ. 272. जातककथा (सं. 182) धम्मपदअट्ठकथा, खण्ड 1, पृ. 59-105 तथा थेरगाथा, 1571 56. संगमावतार जातक सं. 102 (हिन्दी अनुवाद)। 57. पेन्जर, कथासारित्सागर, जिल्द 1, अध्याय 4, पृ. 371 58. ब्लूमफील्ड, "आन द आर्ट आफ ऐन्टरिंग एन अदर्स बाडी" नामक निबन्ध प्रोसीडिंग्स अमेरिकन फिलोसोफिकल सोसायटी, 561 59. उत्तराध्ययनसूत्र, सुखबोधटीका पत्र 173-751 60. घाटगे, ए.एम., का "ए फ्यू पैरेलल्स इन जैन्स एण्ड बुद्धिस्ट वर्क्स नामक निबन्धा 61. जैन जगदीशचन्द्रः प्राचीन भारत की श्रेष्ठ कहानियाँ (बौद्ध कहानियाँ), दिल्ली 19771 62. जैन, डा. हीरालालः सुगन्धदशमी कथा, भूमिका, पृ.8। 63. (क) अंगसुत्ताणि (आवार्य तुलसी), प्रथम, पृ. 9461 जक्खिणी पुष्फचूला य चंदणज्जा य आहिया। -समवायांग, सू.233 (ख) अज्जचंदणा- भगवती, 9.1531 64. तुलनात्मक चार्ट के लिए देखें- उवासगदसाओ, ब्यावर, सं.- डा. छगनलाल शस्त्री, पृ. 194-1951 65. डा. बरुआ- "द आजीवकाज्" द्रष्टव्य। 66. निरयावलीकहा, अ. 2.101 67. द्रष्टव्य, लेखक का शोध-प्रबन्ध- कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन, वैशाली, पृ. 210। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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