Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 81
________________ आरामसोहाकहा ( पद्य) - परिचय/71 के साहस और कुंज से प्रभावित होकर उसे अपनी पटरानी बना लिया। विद्यत्प्रभा को वह आरामशोभा के नाम से पुकारने लगा। उनके दिन सुख से व्यतीत होने लगे। ___ इधर आरामशोभा की सौतेली मां के एक पुत्री उत्पन्न हुई। उसके जवान होने पर उस सौतेली मां ने चाहा कि जितशत्रु राजा आरामशोभा के स्थान पर उसकी पुत्री को पटरानी बना ले। अतः उसने गर्भवती आरामशोभा को अपने घर बुलाया और उसके पुत्र के जन्म हो जाने पर आरामशोभा को एक कुँए में डाल दिया और उसके पुत्र के साथ अपनी पुत्री को आरामशोभा बनाकर राजा के पास भिजवा दिया। राजा को नकली आरामशोभा पर शक जरूर हुआ किन्तु पुत्र की प्रसन्नता में उसने इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया। ___असली आरामशोभा को अपने पुत्र को देखने की बड़ी इच्छा हुई तो उसने उसी नागदेवता को स्मरण किया। नागदेवता की कृपा से वह पुत्र का दर्शन करने रात्रि में जाने लगी। किन्तु सूर्योदय के पूर्व उसे वापिस लौटना पड़ता था। एक दिन राजा ने असली आरामशोभा को पकड़ लिया और वापिस नहीं आने दिया। तब से उसके सिर से वह कुंज गायब हो गया। किन्तु आरामशोभा को पुनः अपना पद और गौरव प्राप्त हो गया। उसने अपनी सौतेली मा और बहिन को भी क्षमा कर दिया। ___ एक दिन आरामशोभा राजा के राथ वीरभद्र मुनि के समीप गई। वहाँ उसने अपने पूर्वजन्म के सम्बन्ध में उनसे पूछा कि उसके ऊपर छत्र के आकार का कुंज क्यों स्थित हुआ और उसे पहले दुःख और बाद में सुख क्यों प्राप्त हुआ ? मुनिराज ने उसके पूर्वजन्म की कथा कही चम्पा नगरी में कुलधर नामक वणिक् रहता था। उसके सात पुत्रियों की अच्छे घरों में शादियां हो गयी थी, किन्तु आठवीं पुत्री पुण्य-रहित होने के कारण अविवाहित थी। तभी उस नगर में नन्दन नामक वणिक्पुत्र आया। कुलधर ने उससे अपनी आठवीं पुत्री का विवाह कर दिया और उसके साथ उसे दक्षिण भारत भेज दिया। किन्तु वह नन्दन वणिक् रास्ते में ही अपनी पत्नी को छोड़कर चला गया। वह कुलधर की पुत्री भटकती हुई दूसरे नगर में पहुँच कर मणिभद्र सेठ के घर कार्य करने लगी। मणिभद्र उसे पुत्री की भाँति रखने लगा। एक बार जब मणिभद्र सेठ ने अपने यहाँ एक जिन मन्दिर बनवाया तब वह कुलधर की पुत्री वहाँ विनयपूर्वक जिनभक्ति करने लगी। उस मणिभद्र सेठ के एक बगीचा था जो सिंचाई किये जाने पर भी सूखता जा रहा था। इससे वह सेठ बहुत दुःखी था। तब कुलधर की पुत्री ने चार प्रकार के आहारमात्र का व्रत लेकर शासन देवी की पूजा की। उसकी तपस्या के फल से वह सूखा बगीचा फिर से हरा-भरा हो गया। इससे प्रसन्न होकर सेठ ने उस पुत्री को बहुत सा धन पुरस्कार में दिया। उस पुत्री ने उस धन से जिन-प्रतिमा के ऊपर तीन छत्र और मुकुट आदि बनवा दिये तथा मन्दिर में रथ इत्यादि का दान दिया। इस प्रकार धार्मिक कार्य करते हुए वह पुत्री मरणोपरान्त स्वर्ग में देवता हुई। देवता के भोगों को भोगकर वह विद्युत्प्रभा के रुप में उत्पन्न हुई। पूर्व जन्म के बचपन में धर्म न करने के कारण वह विद्युत्प्रभा बचपन में दुःखी हुई, जिनप्रतिमा पर छत्र प्रदान करने से उसे सिर पर कुंज की शोभा प्राप्त हुई और तपश्चरण करने आदि के कारण उसे राज्य-सुख प्राप्त हुआ है। मुनि के द्वारा इस प्रकार अपना पूर्व- जन्म सुनकर आरामशोभा ने पति के साथ वैगग्य धारण कर तपश्चरण किया एवं सद्गति प्राप्त की। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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