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78/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन सं. 1559 दिया है।
चतुर्थ प्रति में कुल 65 पन्ने हैं, जिनकी साइज 9x4 1/2 इच है। इसका लेखनकाल सं.1519 वैशाख कृष्णा 13, रविवार है। __इस ग्रन्थ की एक प्रति और सरस्वती भवन, नागौर में उपलब्ध है। इसमें 54 पन्ने है, जिनकी साइज 10 3/4x4 3/4 इंच है। इस प्रति में लेखनकाल भी नहीं दिया हुआ है। प्रति की अवस्था भी प्रति जीर्ण-शीर्ण है। इसे इस गेमिणाह- चरिउ की पांचवी प्रति कहा जा सकता है।
णेमिणाहचरिउ (लखमदेव ) की इन पांचों प्रतियों का एक साथ मिलान करने पर ग्रन्थ के संशोधित पाठ को तैयार किया जा सकता है। इस अध्ययन से ग्रन्थकार एवं रचनाकाल के सम्बन्ध में भी कुछ प्रकाश पड़ सकता है। हमने उज्जैन की पाण्डुलिपि को फिलहाल आद्योपान्त पढ़ा है। अतः यहाँ उसी का विशेष परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है।
उज्जैन भण्डार से प्राप्त इस प्रति में कुल 29 पन्ने हैं, जो दोनों ओर लिखे हुए हैं। इनकी साइज 12 1/2 x 6 3/4 इंच है। एक पृष्ठ पर 14 पंक्तियां हैं एवं प्रत्येक पंक्ति में 50 अक्षर है।प्रति स्पष्ट एवं प्रायः शुद्ध लिखी हुई है। सं. 1510 मगषिर वदी 10 को लिखी गयी मूल प्रति से यह नयी प्रति लिपि सं. 1983 में फागुन शुक्ला द्वितीया को की गयी है। सम्भवतः इस प्रति के लेखनकर्ता गोराणिया गोत्र के व्र.नरसिंह है, जो मुनि मदनकीर्ति के शिष्य एवं पद्मनंदि के प्रशिष्य थे।10
इस प्रति का आदि एवं अन्त भाग इस प्रकार है
आदिभाग : ओं नमः ।। सिद्धेभ्यः ।। अथ श्री नेमिनाथ चरित प्रारभ्यते श्री वीतरागायनमः ।।
विसरह-धुर-धारउ विस्सवियारउ विसम विसय विसकिउ विलउ। पणममि बसु गुणहरू वसुधरु तियवरु वारियलंछणु गुणणिलउ।।
कड़वक 1 जय रिसह रहिय-रय-रय सरूव, जय अजिय णाय-णय दिव्वतूव।. जय संभव भत-काणण कुयारि, जय अंहिणंदण गय गिह कुणारि।।
पत्ता ए जिणवर गुणसारा, गइणइतारा, देहि बुल्कि जइ विमल महु । ता रयमि चरियवरू कोउहलहरु णमिणाहरायमइ सहु।। 1।।
अन्तभाग:
गंदउ एहू गंथु चिरुकालें, संवोहउ भव्ययणहं जालइं।11 णेदउ धम्मसत्थु परमेठिठहिं, भंगलु देउ जेमिजिणु गोविहिं। गंदउ णरवइ जण-संजुत्तउ, जणु होज्जउ वरधम्मासत्तउ। पच्चर डणि बहु फलदाइणि, णासइ दुम्मउ जण असुहावणि। पउरवा कमलदिवायरु, विणयचेतु संघह मय सायरु। घणकण पत्त-अत्थ संपुण्णउ, आइस रावउ स्व-रवण्णउ ।
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