Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 86
________________ 76/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन मराठी (18 वीं शती : एव हिन्दी 1750 ) सस्करणों में भी प्राप्त होती है। सौतेली माता का अपनी पुत्री को रानी बनाने के निष्फल प्रयास एवं सौतेली पुत्री को सताने की घटनाएं विश्वसाहित्य में भी प्राप्त होती हैं। डा. जैन ने दो कथाओं का उल्लेख किया है। फ्रेंच कहानी 'सिन्ड्रेला में उसकी सौतेली मा उसे उत्सव मे नहीं जाने देती और अपनी पुत्रियों को सजाकर वहाँ मेजती है। किन्तु राजकुमार अन्तत: सिन्ड्रेला को ही अपनी रानी बनाता है।12 जर्मन कहानी 'अश्पुटेल में जो सौतेली लड़की है वह बिल्कुल आरामशोभा से मिलती-जुलती है। हैजल वृक्ष आरामशोभा के जादुई कुंज की तरह मददगार के रूप में प्रस्तुत किया गया है। अन्ततः अश्पुटेल' को राजकुमार अपनी रानी बना लेता है। इस तरह अभी आरामशोभा कथा की भारतीय एवं विश्वसाहित्य की कथाओं के साथ तुलना करने से और भी नये तथ्य सामने आ सकते हैं।14 सन्दर्भ 1. भोजक, अमृतलाल (.), मूलशुद्धिप्रकरण (प्रथम भाग), अहमदाबाद, 1971, पृ. 22-34! 2. वेलणकर. एच. डी., जिनरत्नकोश, पूना. 1944, पृ.33-34। 3. यह गाथा दर्शनपाहुड (कुन्दकुन्द) एवं भक्तपरिज्ञाप्रकीर्णक में यथावत् उपलब्ध है। 4. सम्यक्त्वसप्तति (संघतिलककृत वृत्तिसहित)स. ललितविजय मुनि, 19161 5. मुनि यशोभद्र (सं.), आरामसोहाकहा. नेमि-विज्ञान ग्रन्यरत्न (3), सूरियपुर, सन् 1940 6. (क) जैन ग्रन्थ-भण्डार, लींबंडी, पोथी नं. 7011 (ख) श्री जैन संघभण्डार, पाटण, डव्वा नं. 6. पोथी नं.91 7. (क) देसाई, जैन साहित्यनो इतिहास. 1933, पृ. 4711 (ख) चौधरी, जी. सी.. जैन साहित्य का बुहत इतिहास भाग 6. पृ. 4171 8. कथा अंजुषः (भाग 7)- आरामशोभारास. (स.) जयत कोठारी एवं कीर्तिका जोशी. अहमदाबाद, ___19834 9. श्री पुष्कर मुनि, जैन कथा, भाग 66, उदयपुर, 1976 1 10. 'जादुई कुंज' मुनि श्री महेन्द्रकुमारजी 'प्रथम' की जैन कहानियाँ भाग 12 में प्रकाशित कथा पर आधारित है। इसका अंग्रेजी अनंवाद भी Jain Stories में प्रकाशित है। 11. जैन, हीरालाल, सुगंधदशमीकथा. वाराणसी. 1944, भुमिका, पृ. 181 12. द स्लीपिंग व्युटी एण्ड अदर फेयरी टेल्स फ्राम द ओल्ड फ्रेन्च (रिटोल्ड बाइ ए. टी. विलचर-कोडच)। 13. जेकब लुडविक कार्लग्रिम, 'दि किंडर उण्ड हाउसमारवेन,' (अंग्रेजी अनुवाद ग्रिम्स टेल्स)। 14. सम्पादन एवं अनुवाद के साथ लेखक द्वारा शीघ्र प्रकाश्य। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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