Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 83
________________ आरामसोहाकहा ( पद्य) - परिचय/73 आरामसाहिआ विव इअ सम्म दसणम्मि भो भव्वा । कुणह पयत्तं तुझे जह अइरा लहह सिवसुक्खं ।। 320 ।। !! श्री शुभं भवतु ।। मूलशुदिप्रकरणवृत्ति की आरामसोहाकहा एवं अज्ञातकर्तक कथा की गाथाओं में कोई समानता नहीं है। सूक्ष्म अध्ययन करने पर भाषा की कुछ समानता मिल सकती है। कथाअश लगभग एक जैसा है। कुछ स्थान के नामों में भी अन्तर है। इस प्राकृत आरामशोभाकथा की अब तक निम्न पाण्डुलिपियों का पता चला है-- 1. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति मंदिर, अहमदाबाद. (प्रस्तुत पाण्डुलिपि) नं. 1605 विजयधर्मलक्ष्मी ज्ञान-मंदिर, वेलनगंज, आगरा, नं. 1601 3. देला उपासरा भण्डार, अहमदाबाद, नं. 134 4. देला उपासरा भण्डार, अहमदाबाद, नं. 100 5. विमलगच्छ उपासरा ग्रन्थ-भण्डार, फलूसापोल, अहमदाबाद. नं. 627, 852 6. विमलगच्छ उपासरा ग्रन्थ-भण्डार हजपटेलपोल, अहमदाबाद, डब्बा नं. 15, पोथी न. 5 7. भण्डारकर ओरियन्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट. पूना, 1887-91 का कलेक्शल, नं. 1293 8. भण्डारकर ओरियन्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूना पीटर्सन रिपोर्ट 1, नं. 239 9. लीबंडी जैन ग्रन्थ-भण्डार, नं. 681 इन पाण्डुलिपियों की प्राप्ति एवं उनके अवलोकन से पता चलेगा कि इनमें कोई प्रशस्ति आदि है अथवा नहीं। सम्पादन-कार्य के लिए भी इनसे मदद मिल सकती है। इस ग्रन्थ में कुछ उद्धरणों का प्रयोग हुआ है। अन्य ग्रन्थों में उनकी खोज करने से इस ग्रन्थ के रचनाकाल का निर्धारण हो सकता है। कुछ उद्धरण यहाँ प्रस्तुत हैं(क) दंसण-भट्ठो भट्ठो दंसण भटठस्स नत्थि निव्वाण । सिझंति चरण-रहिआ दंसणरहिआ न सिझंति ।।3।। (ख) बालस्स माय-मरणं भज्जा-मरणं च जोव्वणारंभे।। थेरस्स पुत्त-मरणं तिन्नि वि गुरुआइ दुक्खाई ।।12।। (ग) पुव्वभवे जं कम्म सुहासुहं जेण जेण भावेण।। जीवेण कयं त चिअं परिणमई तम्मि कालम्मि ।।13।। (घ) विहल जो अवलबई आवइपडिअ व जो समुद्धरइ। सरणागयं च रक्खइ तिहिं तिसु अलंकिआ पुहवी ।।39।। (ड) धम्मेण सुह-संपया सुभगया नीरोगया आवया-चतं। दीहरभाउअं इह भवे जम्मो सुरम्मे कुले ।।223 ।। (च) दिव्वस्वमउव्वं जुळ्वणभरो सती सरीरे जणे। किती होइ सुधम्मओ परभवे सग्गापवग्गस्सिरी ! 122411 (3) आरामशोभाकथा की तीसरी रचना प्राकृत गद्य में है। हरिभद्रसूरिकृत 'सम्यक्त्वसप्तति पर संघतिलक ने ई. सन् 1365 में प्राकृत में वृत्ति लिखी है। इस वृत्ति में Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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