Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 54
________________ 44/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन 2. (ख) पर-व्याकरण बरा जाति-स्मरण :- गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर को पूछाहे भगवन् ! मुझे केवलज्ञान क्यों नहीं हो पा रहा है ? तब भगवान ने कहा-हे गौतम ! तुम्हारा मेरे ऊपर बहुत स्नेह है, उस राग के कारण से तुम्हें केवलज्ञान नहीं हो रहा है। तब गौतम ने पूछा कि आपके ऊपर मेरा राग क्यों है ? तो भगवान् ने उसे पूर्व-जन्मों के सम्बन्ध बतलाए। उन्हें सुनकर गौतम को जाति-स्मरण हुआ। यह तीर्थकृत् व्याकरण जाति-स्मरण है। 3. (ग) अन्य श्रवण खरा जाति-स्मरण :- मल्लि स्वामी ने मल्लि राजकुमारी के रूप में अपने पर आसक्त छह राजकुमारों को प्रतिबोधित करते हुए उन्हें पूर्व जन्म का स्मरण दिलाया था कि हम सभी एक साथ दीक्षित हुए थे। उसके बाद जयन्त विमान में देव हुए, इत्यादि। इससे उन राजकुमारों को जाति-स्मरण उत्पन्न हुआ। 4. यशोधर बरा आटे के मुगे की बलि :- मरने के बाद पितृ-पिण्डदान आदि प्रवृत्त होते है। मेरे इस सम्बन्धी को इसने मारा अतः इसके पाप को दूर करने के लिए उसके बन्धु-बान्धव दुर्गा आदि देवी के समक्ष बकरे आदि की बलि देते हैं। जैसे यशोधर ने आटे की मुगें की बलि दी थी।10 यशोधर की कथा की जैन साहित्य में लम्बी परम्परा है। इस कथा पर कई ग्रन्थ लिखे गये हैं। 5. जात्यंध मृगापुत्र की वेदना :- जो न देखते हैं, न सुनते हैं, न संघते हैं, न चलते हैं, वे वेदना का अनुभव कैसे करते हैं ? ऐसा पूछे जाने पर भगवान् महावीर ने उदाहरण देकर कहाजैसे कोई जात्यंध, बहिरा, गूंगा, कुष्ठी, लंगड़ा व्यक्ति भाले की नोंक से छेदे जाने पर दुःख का अनुभव करता है- मृगापुत्र की तरह, इसी प्रकार पृथ्वीकाय जीव भी दुःख का अनुभव करते हैं। इसलिए पुथ्वी को हल, कुदाली आदि से खोदने पर वह हिंसा का कारण होता है। आगम साहित्य में यह कथा प्रचलित रही है। 6. धर्मघोष के प्रमादी शिष्य की कथा :- आतंकदर्शी वायुकाय की हिंसा नहीं करता। यह आतंक द्रव्य और भाव दो प्रकार का है। द्रव्य आतंक के कथन में प्रमादी शिष्य का यह उदाहरण है जम्बूद्वीप में सुप्रसिद्ध भारतवर्ष है। वहाँ पर अनेक नगर के गुणों से युक्त राजगृह नामक नगर है। वहाँ पर शत्रुओं के भारी अभिमान का मर्दन करने वाला, भुजाओं में बल रखनेवाला, जीव-अजीव के स्वरूप को जानने वाला जितशत्रु नामक राजा था। निरन्तर वैराग्य भाव को धारण करने वाला वह राजा एक बार धर्मघोष मुनि के चरणों में एक प्रमादी शिष्य को देखता है। वह शिष्य अनेक वर्जित कार्यों को कर रहा था। अतः शेष शिष्यों के आचरण की रक्षा के लिए जितशत्रु उस प्रमादी शिष्य को अपने साथ ले आया। अपने सैनिकों को राजा ने उस प्रमादी शिष्य को सौंप दिया। उन्होंने उसके सामने ही वहाँ बनावटी तीव्र तेज जलने वाले पदार्थों के ढेर में एक नकली मनुष्य को डाल दिया। वह क्षणमात्र में ही जलकर वहाँ राख हो गया। फिर राजा ने पहले से सिखाये हुए दो व्यक्तियों को वहाँ बुलाया। एक गृहस्थवेश में था और दूसरा साधु के वेश में। राजा ने उनका अपराध पछा । सैनिकों ने कहा कि इन्होंने आपकी आज्ञा की अवहेलना की है और यह संन्यासी अपने धर्म के अनुसार आचरण नहीं करता है। तब राजा ने उन दोनों को उस नकली तेजाब के ढेर में डलवा दिया। क्षणमात्र में वे दोनों हड्डियों के ढेर हो गये। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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