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62/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन
विद्याप्रसारक वर्ग पालीताणा, 1909 19. आवश्यकवृत्ति टिप्पण, देबच्न्द लाल भाई, अहमदाबाद 20. दशवैकालिक हा.वृ. प्रकाशक, भारतीय प्राच्यतत्व प्रकाशन, पिंडवाड़ा, गाथा 37 की वृत्ति पृ. 13 21. वही गाथा 177 वृत्तिगा. 4, पृ. 63 22. इसी प्रकार नाव एवं छिद्र का प्रतीक जैनदर्शन के अन्य ग्रन्थों में भी प्राप्त है। 23. उपदेशपद. गाथा 172-179 पृ. 144 24. ज्ञाताधर्मकथा, सातवां अध्ययन, रोहिणी-कथा। 25. एवामेव समणाउसी जाव पंच महव्वया संवड़िढया भवंति, से णं इह भवे चेव बहूणं समणाणं जाव
वीईवइस्सइ जहा न सा रोहिणीया- ज्ञाताधर्मकथा, 7.1
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