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60/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन
नारी किसी भी क्षेत्र में पुरुष से कम नहीं है। विजयी हो जाने पर भी नारी का अन्नपूर्णा का रूप धूमिल नहीं होता। नारी द्वारा अन्ध-विश्वासों के विरुद्ध संघर्ष छेड़ने का कार्य कराकर हरिभद्र ने यह सिद्ध कर दिया है कि मध्ययुग के प्रारम्भ में ही नारी आधुनिकता की ओर अग्रसित हो चुकी थी।
आगम ग्रन्थों की व्याख्या के क्षेत्र में आचार्य हरिभद्र की विशेष भूमिका है। उन्होंने दशवैकालिक टीका में 30 महत्वपूर्ण प्राकृत कथाएं प्रस्तुत की है।17 उपदेशपाद18 नामक ग्रन्थ में लगभग 70 कथाएं उन्होने लिखी हैं। आवश्यकवृत्ति के टिप्पण' में भी संस्कृत में कुछ कथाएं दी गयी हैं। हरिभद्र की ये लघु कथाए कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। इन लघु कथाओं में भी प्रतीकों का प्रयोग हरिभद्र ने किया है। प्रतीकों द्वारा भावों की अभिव्यंजना में कथाकार को पर्याप्त सफलता प्राप्त हुई है। प्राकृत लघु-कथाओं में प्राप्त कुछ प्रतीक कथाओं को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।
दशवैकालिक हारिभद्रीयवृत्ति में एक वणिक् की कथा है। एक दरिद्र वणिक रत्नदीप को गया। वहाँ व्यापार करके उसने कीमती रत्न प्राप्त किये। उन्हें लेकर जब वह वापिस लौटने लगा तो चोरों से बचने के लिए उसने असली रत्न भीतर छिपा लिये और हाथ में सामान्य पत्थर लेकर वह चल पड़ा। वह पागलों की भांति चिल्लाता हुआ कि रत्नवणिक जा रहा है, रास्ता पार करता रहा। रास्ते में उसने कीचड़ स्वादरहित जल को पीकर भी अपने रत्नों की रक्षा की और वापिस अपने घर लौट आया।20
हरिभद्र की इस कथा में रत्नदीप मनुष्यभव का प्रतीक है और वणिक पुत्र जीव का । रत्न रत्नत्रय सम्यग्दर्शन, सम्याज्ञान और सम्यक्चारित्र के प्रतीक हैं। चोरों का भय, विषय-वासना का भय है, जिनसे रत्नत्रय को सुरक्षित रखना आवश्यक है। वणिकपुत्र ने मार्ग में जो स्वादरहित जल पीकर एवं अनेक कष्टों को झेलकर रत्नों की रक्षा की थी, वह इस बात का प्रतीक है कि रत्नत्रय की रक्षा भी इंन्द्रिय-निग्रह एवं प्राषुक जल व भोजन करने से ही हो सकती है।
हरिभद्रसूरि के इसी ग्रन्थ में "घड़े का छिद्र" नामक एक अन्य कथा प्राप्त होती है।21 पानी सरकर एक पनहारिन मार्ग से जा रही थी। किसी चंचल राजकुमार ने कंकड़ मारकर पनहारिन के घड़े में छेदकर दिया, जिससे पानी झरने लगा। किन्तु पनहारिन ने गीली मिट्टी द्वारा उस छिद्र को बन्द कर दिया और भरा हुआ घट वह अपने घर ले आयी । इस कथा में घड़ा साधक का प्रतीक है और पनहारिन शुभ भावों की। कंकड़ मारने वाला राजकुमार अशुभ भावों का प्रतीक है। छिद्र हो जाना योग की चंचलता एवं आसव का प्रतीक है। छिद्र को मिट्टी से बन्द कर देना गुप्ति अथवा सवर का प्रतीक है।22 इस प्रकार यह कथा दार्थानिक प्रतीकों की कथा
आचार्य हरिभद्रसूरि का उपदेशपद नामक ग्रन्थ कथा साहित्य की दृष्टि से विशेष महत्व का है। इसमें जीवन के विभिन्न पक्षों को उजागर करने वाली कथाएं हैं। प्रतीक कथा के रूप में "धन्य की पुत्र-वधुएँ" नामक कथा ध्यान आकर्षित करती है।23 यद्यपि यह कथा मूल रूप से ज्ञाताधर्मकथा में प्राप्त है24 किन्तु हरिभद्र ने इसमें सुन्दर संवादों का प्रयोग करके इसे मनोहारी बता दिया है। संक्षेप में कथा इस प्रकार है:
धन्य सेठ अपनी चार बहुओं की श्रेष्ठता की परीक्षा करने के लिए उन्हें धान के पाँच दाने यह कहकर दता है कि जब मैं मागू तब इन्हें वापिस कर देना। बड़ी बहू ने उन दानों की उपेक्षा
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