________________
हरिभद्रसूरि की प्रतीक कथाएँ/59
लगता है।" __इस प्रतीक कथा को स्पष्ट करते हुए आचार्य कहते हैं कि घना जगल संसार का प्रतीक है, वह भटका हुआ पुरुष जीत का । जगली हाथी मृत्यु का प्रतीक है। वह कुआ मनुष्य एवं देव गति का प्रतीक है। अजगर नरक एवं तिर्यंच गति का प्रतिनिधित्व करता है। चारों ओर के साप कोध मान, माया, एवं लोभ कषायों के प्रतीक हैं। वट वृक्ष का प्रारोह (जड़) मनुष्य की आयु है। दोनों काले एव सफेद चूहे कृष्ण और शुक्ल पक्षरूपी रात-दिन है, जो आयु को क्षीण करने में लगे हैं। मधुमक्खियों शरीर को लगने वाली व्याधियाँ हैं और जो मधु की एक-दो बूद मुंह में आयी है वह संसार के क्षणिक सुख का प्रतीक है।11।
मधुविन्दु दृष्टान्त की यह प्रतीक कथा साहित्य, कला एवं दर्शन के क्षेत्र में बहुत प्रचलित हुई है। 2 आचार्य हरिभद्र ने इस प्राचीन कथा को जन-मानस तक पहुँचाने में विशेष योग किया है।
समराइच्चकहा के तीसरे भव की कथा में जालिनी और शिखिन् का वृतान्त वर्णित है। अग्निशर्मा एवं गुणसेन के जीव पुत्र एवं माता के रूप में यहाँ जन्म लेते हैं। पुत्र के प्रति माता के मन में पूर्वजन्म के निदान के कारण वैर उत्पन्न हो जाता है। अतः वह पुत्र को गर्भ के समय से ही दुश्मन समझने लगती है। इस भावना को विकसित करने में हरिभद्र ने कई प्रतीकों का सहारा लिया है। माता जालिनी को गर्मधारण करने के उपरान्त एक स्वप्न आता है कि उसने जो स्वर्ण-घट देखा है वह टूट जाता है।13 स्वर्णघट टूटने की यह घटना एक सार्थक प्रतीक से जुड़ी हुई है। घट, उदर का प्रतीक है, कथा के रहस्य का प्रतीक है, एवं स्वर्ण गर्भ में स्थित जीव का। किन्तु स्वर्णघट का टूटना इस बात का प्रतीक है कि माता जालिनी स्वयं अपने गर्भ को नष्ट करने का प्रयत्न करेगी। अतः यह प्रतीक भविष्य की सूचना देने के लिए प्रयुक्त हुआ है। __नवें भव की कथा में समरादित्य एवं गिरिषेण के प्रतिद्वन्द चरित्रों को प्रस्तुत किया गया है। इसके लिए कई सार्थक प्रतीकों का प्रयोग कथाकार ने किया है। इस कथा में गर्भवती माता को स्वप्न में सूर्य दिखायी पड़ता है। 4 सूर्य-दर्शन की यह घटना कथा के निम्न कार्यों को सूचित करती है
1. गर्भस्थ बाल की तेजस्विता 2. संसार के प्रति समरादित्य की अलिप्तता 3. केवलज्ञान प्राप्ति का संकेत एवं 4. प्रकाश की तरह धर्मोपदेश का वितरण आदि।
इसी प्रकार समरादित्य का जन्म होते समय उसकी माता को कोई प्रसूतिजन्य क्लेश नहीं होता। यह इस बात का प्रतीक है कि उत्पन्न होने वाला शिशु जब अपनी मां को कष्ट नहीं देना चाहता तब वह दया, ममता, उदारता आदि गुणों का पुंज होगा।
आचार्य हरिभद्रसूरि का दूसरा महत्वपूर्ण कथा-ग्रन्थ घूर्ताख्यान है। भारतीय साहित्य में यह अपने ढंग की अनूठी रचना है। इसमें पाँच घूर्तों की कथा है।15 चार पुरुष एवं एक नारी पुराणों, काव्यों एवं प्राचीन ग्रन्थों में प्राप्त असंभव लगने वाली, अबौद्धिक एवं काल्पनिक कथाओं को कहकर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करना चाहते हैं। व्यंग के माध्यम से वे जन मानस को यथार्य पुरुषार्थी जीवन की शिक्षा देना चाहते हैं। इस कथा में नारी धूर्ता खण्डपाना अपनी बुद्धि के चातुर्य से चारों धूर्तो पर विजय पा लेती है। हरिभद्र की यह पूरी ही कया इस बात की प्रतीक है कि
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org