________________
षष्टम
हरिभद्रसूरि की प्रतीक कथाएं
आचार्य हरिभद्रसूरि भारतीय साहित्य में कथा - सम्राट के रूप में विख्यात है। समराइच्चकहा एवं धूर्ताख्यान जैसे प्रसिद्ध कथा-ग्रन्थों के अतिरिक्त उन्होंने सैकड़ों लघु कथाएं भी लिखी हैं। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने हरिभद्र के कथा - साहित्य का मूल्यांकन प्रस्तुत किया है। हरिभद्र द्वारा प्रस्तुत विभिन्न प्रकार की कथाओं में से उनकी कतिपय प्रतीक कथाओं के वैशिष्ट्य को यहाँ प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है।
प्राकृत कथा साहित्य में प्राचीन काल से ही प्रतीकों का प्रयोग होता रहा है। कथाकार अपनी कथा में भावों को व्यंजित करने के लिए प्रतीकों का प्रयोग करता है। जैसे घूंघट से झांकता हुआ नारी का सुन्दर मुख दर्शक को अधिक कौतूहल एवं आनन्द प्रदान करता है, वैसे ही प्रतीकों का प्रयोग कथा को अधिक मनोरंजक एवं सार्थक बना देता है। प्रतीकों के प्रयोग से प्रतिपाद्य विषय का सरलता से स्पष्टीकरण हो जाता है। सीधी-सादी कथा प्रतीकों से अलंकृत हो उठती है । जैसे प्राकृत कथाओं से नायक द्वारा समुद्र- यात्रा की जाती है। किन्तु प्रायः अधिकांश कथाओं में समुद्र के बीच में जहाज तूफान से भाग्न हो जाता है और किसी लकड़ी के पटिये के सहारे नायक समुद्र के तट पर जा लगता है। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि संसार एक समुद्र की भांति है, जहाँ कर्मों के तूफान उठते रहते हैं और शरीर रुपी नौका भग्न होती रहती है। किन्तु पुरुषार्थी जीव रुपी नायक अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। 2
आचार्य हरिभद्र ने अपनी कथाओं में इस प्रकार के कई प्रतीकों का प्रयोग किया है। शब्द-प्रतीकों के अन्तर्गत कथा के पात्रों के विशेष नाम रखे गये हैं । समराइच्चकहा के नायक समरादित्य का नाम स्वयं एक प्रतीक है। समर का अर्थ है- युद्ध संघर्ष । नायक नौ भवों तक अपने प्रतिद्वन्दियों से जूझता रहता है। आदित्य का अर्थ है- सूर्य । सूर्य अस्त होने के बाद भी अपनी प्रखर आभा के साथ उदित होता रहता है। उसी प्रकार नायक भी अनले कर्तव्यों का पालन करता हुआ अन्ततः निर्वाण प्राप्त करता है। कुछ प्रतीक विशेष अर्थ को व्यंजित करने वाले होते हैं। जैसे- अधिक घमंड करने वाला कोई पात्र मरकर हाथी होता है। यहाँ मान का प्रतीक नाक है। पात्र ने अधिक मान किया इसलिए उसको लम्बी नाक- सूंड वाला हाथी का जन्म मिला । जब किसी दीपक या सूर्य के उदाहरण द्वारा केवलज्ञान का परिचय दिया जाता है तो वह भाव-प्रतीक का प्रतिनिधित्व करता है। प्राकृत कथाओं में ऐसे कई उदाहरण प्राप्त हैं। कुछ ऐसे दृश्य एवं बिम्ब भी प्राप्त होते हैं जो अमूर्त भावों को व्यक्त करते हैं। जैसे कीचड़ से अच्छादित लौकी भारी हो जाने से जल में डूब जाती है और कीचड़ की परत गल जाने पर हलकी होकर वह पानी के ऊपर आ जाती है, यह कथा - घटना बिम्ब प्रतीक के रूप में है। यहाँ लौकी जीवात्मा और कीचड़ कर्मो का प्रतीक है। 3 आगम साहित्य में ऐसी कई प्रतीक कथाएं प्राप्त हैं। आचार्य हरिभद्र ने समराइच्चकहा में ऐसे प्रतीकों का प्रयोग किया है। दूसरे भव की कथा में गर्भ में नायिका को सांप का स्वप्न आता है, जो इस बात का प्रतीक है कि होने वाला बालक
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org