________________
कथाओं का प्रतिपाद्य विषय :
आचारांग के व्याख्या साहित्य में जो उपर्युक्त लगभग पचास कथाएं एवं रूपक प्राप्त है उनके द्वारा आचारांग के मूल विषय को सुबोध बनाया गया है। मुख्यरूप से निम्नांकित विषय इन कथाओं द्वारा समझाये गये हैं
क्रम
विषय
1. जाति - स्मरण, (स्वमति),
"T
"
(पर-व्याकरण),
जाति - स्मरण, (अन्य श्रवण), 2. पूजा के लिए हिंसा - विरोध, 3. इन्द्रिय - विकल की तरह पृथ्वी - कायिक जीवों को वेदना,
4. आतंक - दर्शन द्वारा हिंसा से विरत, 5. ममत्व और प्रमाद से हिंसा,
6. काल - अकाल में विवेक - शून्यता, 7. वृद्धावस्था के दुख,
8. विषय-भोगों में आसक्ति, विरक्ति, 9. अप्रतिज्ञ न होने से हानि,
10. काल्पनिक मूढ व्यक्ति द्वारा स्वयं को ठगना,
11. काम की अनासक्ति एवं अर्थ में मूर्च्छा, 12. धर्मकार्य की मर्यादा.
13. इन्द्रिय विषयों की आसक्ति से दुःख,
आचारांग व्याख्याओं की कथाएँ/53
Jain Educationa International
कथाएं
1. धर्मरुचि एवं जितशत्रु राजा 2. गौतम स्वामी एवं महावीर
3. मल्लि राजकुमारी एवं छह राजकुमार 4. यशोधर और आटे का मुर्गा 5. जात्यंध मृगापुत्र
6. धर्मघोष का प्रमादी शिष्य
7. परशुराम कथा,
8. चाणक्य द्वारा नंदकुलनाश,
9. जरासन्ध द्वारा बदला
10. प्रद्योत एवं मृगावती
11. धनसार्थवाह का कुटुम्ब
12. ब्रह्मदत्त एवं, 13. सनत्कुमार
14. स्कन्दाचार्य (क्रोध में )
15. बाहुबली (मान में)
16. मल्लिस्वामी का जीव (माया में ), 17. यति आभासा आदि ( लोभ में), एवं
18. वसुदेव दृष्टान्त (अप्रतिज्ञ ) 19. दधिघटिका द्रमक का सपना एवं, 20. मम्मण वणिक् ( लोभ में )
21. मगधसेन गणिका एवं धन सार्थवाह 22. नन्द एवं चाणक्य,
23. बुद्ध एवं भागवत,
24. मल्लि उपाख्यान एवं भागवत,
25. सत्यकि एवं रौद्र आदि
26. पुष्पशाल एवं भद्रा (शब्द),
27. अर्जुन तस्कर (रूप ), 28. गन्धप्रिय कुमार (गंध), 29. सौदास राजा (रस),
30. सत्यकि (स्पर्श), एवं, 31. सुकुमारिका ( कामासक्ति )
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org