Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 50
________________ 40/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन अण्णं सक्कय-पायय-संकिण्ण-विहा-सुवण्ण-रइयाओ। सुव्वंति महा-कइ-पुंगवेहि विविहाउ सुकहाओ।। -लीला. गा. 36, पृ.101 भाषागत कथाओं के भेद की चर्चा अन्य आचार्यों ने अधिक नहीं की है क्योंकि भाषाएँ समय-समय पर बदलती रहती हैं। मिश्रकथा का तात्पर्य संस्कृत ओर प्राकृत भाषा की मिली-जुली कथा से है। अपभ्रंश भाषा में कई कथाएँ लिखी गई है। अतः कवि ने जिसे संकीर्ण कथा कहा है वह संस्कृत, प्राकृत के अतिरिक्त अन्य भाषा की कथा का द्योतक है। शैलीगत भेद : विषय, पात्र एवं भाषा के आधार पर प्राकृत कथाओं का वर्गीकरण कथाओं के ऊपरी ढांचे को व्यक्त करता है। कथा के आन्तरिक स्वरूप का विश्लेषण इससे नहीं होता। अतः आचार्यों ने स्थापत्य या शैली के आधार पर कथाओं का वर्गीकरण किया है। उद्योतनसूरि ने कथा-शिल्प के आधार पर पाँच प्रकार की कथाएँ मानी है- सकलकथा, खण्डकथा, उल्लापकथा, परिहासकथा एवं संकीर्णकथा।12 सकलकथा - इसमें चारों पुरुषार्थों का वर्णन रहता है। नायक एवं प्रतिनायक के जीवन-संघर्ष की कहानी इसमें वर्णित होती है। अभीष्ट फल या वस्तु की प्राप्ति करना इस कथा का प्रमुख उद्देश्य होता है। सकलकथा का अर्थ सम्पूर्ण कहानी है, जिसे सफल कथा भी कह सकते हैं। खण्डकथा - सम्पूर्ण कथावस्तु के किसी एक खण्ड या अंश को पूर्णता के साथ व्यक्त करना खण्डकथा का प्रतिपाद्य होता है। इसकी कथावस्तु छोटी होती है। कथा का मनुष्य प्रतिपाद्य कथा के मध्य में या अन्त के पहले निरूपित कर दिया जाता है। उल्लापकथा - समुद्रयात्रा या साहसपूर्ण कार्यों को व्यक्त करने वाली कथा उल्लासकथा होती है। नायक के किसी विशेष गुण को व्यक्त करना इस कथा का उद्देश्य होता है। इसमें धर्मचर्चा एवं नैतिक आदर्श भी होता है।। हास्य अथवा व्यंग्यप्रधान कथा को परिहासकथा कहा गया है। संकीर्णकथा- इसे कुछ कथाकारों ने मिश्रकथा भी कहा है। वास्तव में इस कथा में सभी कथाओं के गुण विद्यमान होते हैं। उद्द्योतनसूरि ने संकीर्णकथा की प्रशंसा करते हुए कहा है कि सभी कथागुणों से युक्त, अलंकार-काव्य आदि श्रृंगार गुणों से मनोहर, सुन्दर संरचना वाली, सभी कलाओं और आगम के सौभाग्य को प्राप्त संकीर्णकथा का ज्ञान करना चाहिए सव्वकहागुणजुत्ता सिंगार-मणोरहा सुरइयंगी। सव्व-कलागमसुहया संकिण्ण-कहत्ति णायव्वा ।। -कुव, 4.13 कथाओं के इन भेद-प्रभेदों के अतिरिक्त प्राकृत साहित्य में विषय और शैली की दृष्टि से कथाओं के अन्य भेद भी उल्लिखित हैं, किन्तु वे इन प्रमुख भेदों का ही स्पष्टीकरण करते हैं। आचार्य हेमचन्द्र ने अपने काव्यानुशासन में कथाओं के निम्न बारह भेद गिनाये हैं-13 __ 1.आख्यायिका 2. कथा 3. आख्यान 4.निदर्शन 5.प्रवल्हिका 6. मन्थल्लिका 7. मणिकुल्या 8. परिकथा 9.खण्डकथा 10.सकलकथा 11.उपकथा और 12.बृहत्कथा। इन सबके स्वरूप को उन्होंने स्पष्ट भी किया है। डा. ए.एन. उपाध्ये ने जैन कथाओं का विश्लेषण करते समय प्राकृत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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