Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 49
________________ प्राकृत कथाओं के भेद-प्रभेद/39 कराने वाली होती है। इस प्रकार की कथा में लोक-परलोक में प्राप्त होने वाले सुख-दुःख परिणामों का विश्लेषण होता है। अतः निर्वेदिनी कथा को धर्मकथा भी कहा गया है। मिश्र या संकीर्णकथा - जिस कथा में धर्म, अर्थ और काम इन तीनों पुरुषार्थों का निरूपण किया गया हो वह मिश्र-कथा कही जाती है। उद्योतनसूरी ने ऐसी कथा को संकीर्णकथा कहा है। इस मिश्रकथा में जन्म-जन्मांतरों के कथानक सुंदर ढंग से गुथे हुए रहते हैं। इसमें कथानायकों के प्रेम, पराक्रम, शील, साहस आदि का वर्णन और मनोविकारों का काव्यात्मक विवेचन पाया जाता है। हरिभद्रसूरि ने यह स्पष्ट किया है कि ऐसी मिश्रकथा में जन्म-जन्मांतरों का वर्णन उदाहरण हेतु और कारणों से युक्त होना चाहिए। धर्मतत्व के साथ-साथ अर्थ और काम तत्व का समिश्रण दूध में चीनी के समान संकीर्ण कथा में होता है।10 इस कथा में वर्णात्मक शैली का अधिक प्रयोग होता है। मनोरंजन और कौतुहल के साथ-साथ यह कथा नैतिक विकास के लिए प्रेरणा प्रदान करने वाली होती है। इस प्रकार विषय के आधार पर जो प्राकृत कथाओं का वर्गीकरण किया गया है वह वास्तव में चार पुरुषार्थों पर आधारित है। आधुनिक दृष्टि से सामाजिक कथा, श्रृंगार कथा, नीतिकथा और लोककथा इन चारों का प्रतिनिधित्व अर्थ, काम, धर्म और मिश्रकथा से हो जाता है। पात्रानुसार कथाएँ : प्राकृत कथाकारों ने कथाओं का वर्गीकरण पात्रों के आधार पर भी किया है। हरिभद्रसूरि ने समराइच्चकहा में और महाकवि कौतुहल ने लीलावईकहा में तीन प्रकार की कथाओं का उल्लेख किया है- दिव्यकथा, मानुषकथा, दिव्यमानुषकथा।11 जिन ग्रन्थों में दिव्यलोक के व्यक्तियों की जीवन घटनाओं और चमत्कारपूर्ण क्रियाकलापों का निरुपण हो वे दिव्यकथाएँ कहलाती हैं। ऐसी कथाओं में अलौकिक तत्व अधिक होते हैं। आधुनिक कथा आलोचकों ने ऐसी कथाओं को परीकथा ( fairy tales) कहा है। इन दिव्य कथाओं का पाइक के साथ स्वाभाविक सम्बन्ध नहीं मन पाता। जिस कथा में मनुष्य-लोक के पात्रों की प्रधानता हो एवं मनुष्य के चरित की अच्छी-बुरी घटनाओं और भावनाओं का निरुपण हो वह कथा मानुषकथा कहलाती है। इस मानुषकथा के पात्र यथार्थ-चित्रण के साथ जुड़े हुए होते हैं। जिस कथा में मनुष्य और देव दोनों प्रकार के पात्रों का वर्णन हो वह कथा दिव्य-मानुषीकथा कहलाती है। इन दिव्यमानुषी कथाओं में देव और मनुष्यों के जीवन की, जन्म-जन्मान्तरों की घटनाएँ चित्रित होती है। अतः ये कथाएँ मनोरंजन के साथ-साथ मार्मिक वर्णनों से भी युक्त होती हैं। इन कथाओं में साहस, सौन्दर्य, प्रेम आदि अनेक चरित्रिक विशेषताओं का अपकर्ष और उत्कर्ष चित्रित होता है। कवि कौतुहल ने अपनी लीलावईकहा को दिव्य-मानुषी कथा कहा है। इसमें चरित्र और घटना दोनों का संतुलन प्राप्त होता है। भाषागत भेद : प्राकृत कथाओं का वर्गीकरण भाषा के आधार पर भी किया गया है। महाकवि कौतुहल ने लीलावईकहा में प्रमुख भाषाओं के आधार पर कथाओं के तीन भेद माने हैं- संस्कृतकथा, प्राकृतकथा एवं मिश्रकथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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