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प्राकृत कथाओं के भेद-प्रभेद / 41
कथाओं का वर्गीकरण इन पाँच भागों में किया है- (i) प्रबन्ध - पद्धति में शलाकापुरुषों के चरित (ii) किसी एक प्रसिद्ध महापुरुष का चरित (iii) रोमाण्टिक धर्मकथाएँ (iv) अर्ध- ऐतिहासिक प्रबन्ध कथाएँ एवं (v) उपदेशप्रद कथाओं के संग्रह कथाकोश 1 14
इस प्रकार प्राकृत कथा साहित्य में जो कथाएँ प्राप्त होती हैं उनके स्वरूप का निर्धारण मुख्यतः उनके प्रतिपाद्य विषय को ध्यान में रखकर किया गया है। किन्तु प्राकृत में सभी प्रकार की कथाएँ उपलब्ध हैं। वसुदेवहिण्डी के कथाकार लेखक ने कामकथा को धर्मकथा का आधार स्वीकार किया है। वे मानते हैं कि पहले कथा के श्रोता या पाठक के रुचि की कथा कहकर फिर कथाकार अपनी बात कह सकता है। वास्तव में प्राकृत कथा साहित्य की एक-एक कथा का सूक्ष्म अध्ययन होना आवश्यक है, तभी कथा के समस्त भेद-प्रभेद सामने आ सकेंगे। इसके लिए समस्त प्राकृत कथाओं का कोश तैयार करने की प्राथमिक आवश्यकता है I
सन्दर्भ
1. अकहा कहा य विकहा हविज्ज पुरिसंतर पप्प। दाश. हा. गाथा 208।। 2. पद्मपुराण, पर्व 2, श्लोक 40: महापुराण, पर्व 1, श्लोक 120 3. एत्थ सामन्नओ चत्तारि कहाओ हवन्ति । तं जहा- अत्थकहा, कामकहा, धम्मकहा, संकिण्णकहा य।- समरा, पृष्ठ 2
4. विज्जासिप्पमुवाओ, अणिवेओ संचओ म दक्खत्तं ।
सामं दंडो भेओ उवप्पयाणं च अत्थकहा ।। दश. वृ., गाथा 189
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5. समराइच्चकहा, सम्पा.- याकोबी, पृ. 3
6. सां उण धम्म हा णाणाविह जीव परिणाम-भाव विभावणत्थं । - कुव. 4. 9
7. धम्मका बोद्धव्वा चउव्विहा धीरपुरिस पन्नता ।
अक्रवेवणि विक्खेवणि संवेगो चेव निव्वेए ।। कुव. पृ. 4, अनु. 9
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8. धम्मो अत्यो कामो उवइस्सइ जन्तसुत्त कव्वेसुं ।
लोगे वे समये सा उ कहा मीसिया णाम।। दश.गा. 266
9. पुणो सव्वलभवणा संपाइय-तिवग्गा संकिण्णा त्ति । कुव. पृ. 4
10. शास्त्री, नेमिचन्दः हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परीशीलन, 1965, पृ. 114
11. तं जह दिव्वा तह दिव्व माणुसी माणुसी तहच्चेय । -लीला. गा. 35
12. कुवलयमालाकहा, पृ. 4 अनुच्छेद 7
13. काव्यानुशासन, अध्याय 8, सूत्र 7-8, पृ. 462-4651
14. बृहत्कथाकोश (हरिषेण) की अंग्रेजी प्रस्तावना, पृ. 35
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