Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 42
________________ 32/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन 28. तपश्चर्या में दैवी शक्तियों द्वारा विघ्न 29. साधक की अडिगता 30. गुणी एवं साधक की पत्नी का विपरीत आचरण 31, नारी-हठ के दुष्परिणाम18 32. कठिनता से प्राप्त पुत्र का गृह-त्याग 33. पूर्व वैरी द्वारा साधना में उपसर्ग 34. सामूहिक अनाचार के प्रति विद्रोह 35. आराधक की निष्क्रियता के प्रति आक्रोश 36. हिंसक प्रवृत्ति की अति से आतंक 37. साधारण नायक का साहसी होना 38. क्रूर व्यक्ति का हृदय-परिवर्तन19 39. तपश्चर्या में शरीर का सूखना 40. साधना की पराकाष्ठा से भव-छेदन20 41. वर्तमान जन्म के दुःख को पूर्वजन्मों के कर्मों का फल मानना 42. बड़ी संख्या वाले शिष्यों के नायक को अपनी ओर झुकाना 43. राजा द्वारा अपराधी को दण्ड देना 44. दण्ड पाये हुए अपराधी के प्रति दण्डक की करुणा 45. वध्यपुरुष के पूर्वभव का कथन 46. भाई-बहन में पति-पत्नि का सम्बन्ध 48. संतान प्राप्ति के लिए अनेक प्रयत्न 49. सौतों के प्रति दुर्व्यवहार 50. सास-बहू में डाह इस प्रकार यदि आगमिक कथाओं का एक प्रामाणिक मोटिफ्स-इन्डेक्स तैयार किया जाय तो इन कथाओं की मूल भावना को समझने में तो सहयोग मिलेगा ही. उनके विकास-क्रम को भी समझा जा सकेगा। सामाजिक जीवन : आगम-ग्रन्थों की इन कथाओं में मौर्य-युग एवं पूर्व-गुप्तयुग के भारतीय जीवन का चित्रण हुआ है। तब तक चतुर्वर्ण-व्यवस्था व्यापक हो चुकी थी। इन कथाओं में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्रों के भी कई उल्लेख हैं। ब्राह्मण के लिए माहण शब्द का प्रयोग अधिक हुआ है। महावीर को भी माहण और महामाहण कहा गया है। उत्तराध्ययन में ब्राह्मणों के यज्ञों का भी उल्लेख है, जिन्हें आध्यात्मिक यज्ञों में बदलने की बात इन जैन कथाकारों ने कही है। क्षत्रियों के लिए खत्तिय शब्द का यहाँ प्रयोग हुआ है। इन कथाओं में अनेक क्षत्रिय राजकुमारों की शिक्षा एवं दीक्षा का भी वर्णन है। वैश्यों के लिए इभ्य, श्रेष्ठी, कौटुम्बिक, गाहावइ आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। हरिकेश चांडाल एवं चित्त-सम्भूत मातंगों की कथा के माध्यम से एक ओर जहाँ उनके विद्यापारंगत एवं धार्मिक होने की सूचना है वहाँ समाज में उनके प्रति अस्पृश्यता का भाव भी स्पष्ट Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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