Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 41
________________ कथाओं में सांस्कृतिक धरोहर/ 31 कथानक-सदियाँ एवं मोटिफ्स : कयाओं के तुलनात्मक अध्ययन के लिए उनके मोटिफ्स एवं कथानक सदियों का अध्ययन करना बहुत आवश्यक है। इससे कथा के उत्स एवं विकास को खोजा जा सकता है। पालि-प्राकृत कथाओं में कई समान कथानक सदियों का प्रयोग हुआ है। यह एक स्वतन्त्र अध्ययन का विषय है। यद्यपि विदेशी विद्वानों ने इस क्षेत्र में पर्याप्त कार्य किया है। किन्तु भारतीय कयाओं की पृष्ठभूमि में अभी भी काम किया जाना शेष है। आगम ग्रन्थों में यद्यपि कई कथाएँ प्रयुक्त हुई हैं। उनके व्यक्तिवाचक नामों की संख्या हजार भी हो सकती है। किन्तु उनमें जो मोटिफ्स प्रयुक्त हुए है वे एक सौ के लगभग होंगे। उन्हीं की पुनरावृत्ति कई कथाओं में होती रहती हैं। कथाओं के कुछ अभिप्राय द्रष्टव्य है1. शिष्य की जिज्ञासा का गुरु द्वारा समाधान 2. माता द्वारा स्वप्नदर्शन और पुत्रजन्म 3. गर्भिणी स्त्री का दोहद 4. मुनि-उपदेश से वैराग्य 5. माता-पिता और पुत्र के बीच वैराग्य सम्बन्धी संवाद 6. पूर्वभव-कथन एवं जाति-स्मरण 7. दीक्षा एवं उसके बाद सद्गति 8. साधना से स्खलन और पुनः स्थिरता 9. दो प्रतिपक्षी चरित्रों का द्वन्द्र 10. वैराग्य की परीक्षा में खरा उतरना 11. अन्य धर्मों से अपने धर्म की श्रेष्ठता 12. पुत्र-पुत्रियों की बुद्धि-परीक्षा 13. मित्रों के बीच मायाचार की घटना 14. हिंसा टालेने के लिए युक्ति 15. रूप-वर्णन आदि सुनकर आसक्ति 16. दूसरों द्वारा सन्देश और उनका अपमान 17. सागर-यात्रा में नौका-भग्न 18. निषिद्ध वस्तु के प्रति आकर्षण 19: असम्भव को सम्भव कर दिखाना 20. सन्तान की अदला-बदली 21. पुरुष को नारी द्वारा उद्बोधन 22. सार्थवाह का व्यापार 23. मुनि के प्रति घृणा व निन्दा से जन्मान्तर में कलंक और क्लेश 24. आपत काल में नियमों की छूट 25. परिवार के सदस्यों का एक दूसरे के लिए त्याग17 26. अतिवैभव वाले नायक का त्याग 27. गुरु की न्याय-प्रियता से धर्म-प्रभावना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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