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कथाओं में सांस्कृतिक धरोहर/33 होता है। चाण्डालों के कार्यों का वर्णन भी अन्तकृद्दशा की एक कथा में मिलता है। ___ इन कथाओं के अध्ययन से ज्ञात होता है कि तत्कालीन पारिवारिक जीवन सुखी था। रोहिणी की कथा संयुक्त परिवार के आदर्श को उपस्थित करती है, जिसमें पिता मुखिया होता था (ज्ञाता.7) 1 पिता को ईश्वर तुल्य मानकर प्रातः उसकी चरण-वंदना की जाती थी (ज्ञाता.1 )। संकट उपस्थित होने पर पुत्र अपने प्राणों की आहुति भी पिता के लिए देने को तैयर रहते थे (शाता.18 )। अपनी संतान के लिए माता के अटूट प्रेम के कई दृश्य इन कथाओं में है। मेघकुमार की दीक्षा की बात सुनकर उसकी माता अचेत हो गयी थी। राजा पुणनन्दी की कथा से ज्ञात होता है कि वह अपनी माँ का अनन्य भक्त था । चूलनीपिता की कथा में मातृ-वध का विघ्न उपस्थित किया है। उसमें माता भद्रा सार्थवाही के गुणों का वर्णन है। ___ आगमों की कथाओं में विभिन्न सामाजिक जनों का उल्लेख है। यथा- तलवार, माडलिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, महासार्थवाह, महागोप, सायांत्रिक, नौवणिक्, सुवर्णकार, चित्रकार, गाहावइ, सेवक आदि । गजसुकुमार की कथा से ज्ञात होता है कि परिवार के सदस्यों के नामों में एकरूपता रखी जाती थी। यथा- सोमिल पिता, सोमश्री माता एवं सोमा पुत्री। जन्मोत्सव मनाने की पुरानी प्रथा है, उसमें उपहार भी दिया जाता था। राजकुमारी मल्ली की जन्मगांठ पर श्रीदामकाण्ड नामक हार दिया गया था। जन्मगांठ को वहाँ 'संवच्छरपडिलेहणयं कहा गया है। इसी प्रकार स्नान आदि करने के उत्सव भी मनाये जाते थे। चातुर्मासिक स्नान-महोत्सव प्रसिद्ध था।
इन कथाओं से यह भी ज्ञात होता है कि उस समय समाज सेवा के अनेक कार्य किये जाते थे। नंद मणिकार की कथा से स्पष्ट है कि उसने जनता के लिए एक ऐसी प्याऊ ( वापी) बनवायी थी, जहाँ छायादार वृक्षों के वनखण्ड, मनोरंजक चित्रसभा, भोजनशाला, चिकित्सा-शाला, अलंकार-सभा आदि की व्यवस्था थी। समाज-कल्याण की भावना उस समय विकसित थी। राजा प्रदेशी ने भी श्रावक बनने का निश्चय करके अपनी सम्पत्ति के चार भाग किये थे। उनमें से परिवार के पोषण के अतिरिक्त एक भाग सार्वजनिक हित के कार्यों के लिए था, जिससे दानशाला आदि स्थापित की गयी थी। इन कथाओं में पात्रों के अपार वैभव का वर्णन है। देशी व्यापार के अतिरिक्त विदेशों से व्यापार भी उन्नत अवस्था में था। अतः समाज की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। वाणिज्य-व्यापार एवं कृषि आदि के इतिहास के लिए इन कथाओं में पर्याप्त सामग्री प्राप्त है। समुद्र-यात्रा एवं सार्थवाह-जीवन के सम्बन्ध में तो इन जैन कथाओं से ऐसी जानकारी मिलती है, जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं है।23 बुद्धकालीन समाज की तुलना के लिए भी यह सामग्री महत्वपूर्ण है।
राज्य-व्यवस्था : प्राकृत की इन कथाओं में राज्य-व्यवस्था सम्बन्धी विविध जानकारी उपलब्ध है। चम्पा के राजा कृणिक (अजातशत्रु) की कथा से उसकी समद्धि और राजकीय गुणों का पता चलता है। राज्यपद वंश-परम्परा से प्राप्त होता था। राजा दीक्षित होने के पूर्व अपने पुत्र को राज्य-गद्दी पर बैठाता था। किन्तु उदायण राजा की कथा से ज्ञात होता है कि उसने अपने पुत्र के होते हुए भी अपने भानजे को राजपद सौंपा था। नन्दीवर्धन राजकुमार की कथा से ज्ञात होता है कि वह
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