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कथाओं मे सांस्कृतिक धरोहर/34 चाहिए। यक्ष-प्रतिमाओं और यक्ष-गृहों के सम्बन्ध में तो जैन कथाएं ऐसी सामग्री प्रस्तुत करती हैं, जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं है।
भौगोलिक विवरण : प्राकृत की इन कथाओं का विस्तार केवल भारत में ही नहीं, अपितु बाहर के देशों तक रहा है। इन कथाओं के कथाकार स्वयं सारे देश को अपने पदों से नापते रहे हैं। अतः उन्होंने विभिन्न जनपदों, नगरों, ग्रामों, वनों एवं अटवियों की साक्षात् जानकारी प्राप्त की है। उसे ही अपनी कथाओं में अंकित किया है। कुछ पौराणिक भूगोल का भी वर्णन है, किन्तु अधिकांश देश की प्राचीन राजधानियों, प्रदेशों, जनपदों एवं नगरों आदि से सम्बन्धित वर्णन ही है। अंगदेश, काशी, इक्ष्वाकु, कुणाल, कुरु, पांचाल, कौशल आदि जनपदों, अयोध्या, चम्पा, वाराणसी, श्रावस्ती, हस्तिनापुर, द्वारिका, मिथिला, साकेत, राजगृह आदि नगरों के उल्लेखों को यदि सभी कथाओं से एकत्र किया जाय तो प्राचीन भारत के नगर एवं नागरिक जीवन पर नया प्रकाश पड़ सकता है। आधुनिक भारत के कई भौगोलिक स्थानों के इतिहास में इससे परिवर्तन आने की गुंजाइश है। इस दिशा में कुछ विद्वानों ने कार्य भी किया है। किन्तु उसमें इन कथाओं की सामग्री का भी उपयोग होना चाहिए। जैन कथाओं के भूगोल पर स्वतन्त्र पुस्तक भी लिखी जा सकती है।
सन्दर्भ
1. उपाध्ये, ए.एन. : बृहत्कथा-कोश भूमिका, पृ.8। 2. प्राकृत जैन कथा-साहित्य, पृ.188 (फुटनोट)। 3. जैन, जगदीशचन्द्रः "दो हजार वर्ष पुरानी कहानियाँ" पुस्तक द्रष्टव्य। 4. "द जैनस् इन द हिस्ट्री ऑफ इण्डियन लिटरेचर, सं.- मुनि जिनविजय, पृ. 5. प्रो. हर्टेल, "आन द
लिटरेचर आफ द श्वेताम्बराज् आफ गुजरात" पृ.6। 6. जैन, जगदीशचन्द्रः प्राकृत जैन कथा-साहित्य, पृ.81 7. प्रो. हर्टेल, वही, पृ.7-81 8. देखें- 'सम प्रोब्लम्स आफ इण्डियन लिटरेचर' पृ. 21-401 9. महाप्रज्ञ नथमल मुनि: "आर्ष प्राकृत, स्वरूप और विश्लेषण” नामक निबन्ध, संस्कृत-प्राकृत जैन ___व्याकरण और कोश की परम्परा, छापर 1981 । 10. अट्ठारसविहिप्पगारदेसीभासा विसारए- ध. क. श्रमणकथा, मूल, पृ. 78, पैरा 326 | 11. साध्वी दिवयप्रभा अन्तकृद्शा, ब्यावर (विवेचन) द्रष्टव्य । 12. मुनि नथमलः उत्तराध्ययन- एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृ. 478 आदि। 13. ध.क. उत्तम, कहा. प्र. 20-291 14. जैन, सुदर्शन लालः उत्तराध्ययनसूत्र- एक परिशीलन, वाराणसी, पुस्तक द्रष्टव्य। 15. विस्तार के लिए देखें- "उत्तराध्ययन- एक समीक्षात्मक अध्ययन", पृ.4611 16. सत्येन्द्र, लोक साहित्य विज्ञान, पुस्तक द्रष्टव्य । 17. ज्ञाताधर्मकथा की कथाओं के प्रमुख मोटिफ्स (अभिप्राय) (1-25)। 18. उवासगदसाओं की कथाओं के प्रमुख अभिप्राय (26-31)। 19. अन्तकृद्दशा की कथाओं के प्रमुख अभिप्राय (32-38)।
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