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34 / प्राकृत कथा - साहित्य परिशीलन
अपने पिता के विरुद्ध षड्यन्त्र करके राज्य पाना चाहता था। राजभवनों एवं राजा के अन्तः पुरों के भीतरी जीवन के दृश्य भी इन कथाओं से प्राप्त हैं। अन्तकृद्दशा में कन्या - अन्तःपुर का भी उल्लेख है । राज्य-व्यवस्था में राजा, युवराज, मन्त्री, सेनापति, गुप्तचर, पुरोहित, श्रेष्ठी आदि व्यक्ति प्रमुख होते थे। डा. जगदीश चन्द्र जैन ने आगम कथा-साहित्य के आधार पर प्राचीन राज्य-व्यवस्था पर अच्छा प्रकाश डाला है। अपराध एवं दण्ड व्यवस्था के लिए इस साहित्य में इतनी सामग्री उपलब्ध है कि उससे प्राचीन दण्ड-व्यवस्था पर स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं। जैन कथाकारों ने राजकुलों एवं राजाओं का अपनी कथाओं में उल्लेख प्रभाव उत्पन्न करने के लिए किया है। किन्तु कई स्थानों पर तो उनका ऐतिहासिक महत्व भी है।
धर्मिक मत-मतान्तर :
आगमों की इन कथाओं में जैन धर्म एवं दर्शन के विविध आयाम तो उद्घाटित हुए हैं, साथ ही अन्य धर्मों एवं मतों के सम्बन्ध में इनसे विविध जानकारी प्राप्त होती है। आद्रककुमार की कथा से शाक्य श्रमणों के सम्बन्ध में सूचना मिलती है । धन्ना सार्थवाह की कथा में विभिन्न विचारधाराओं को मानने वाले परिव्राजकों के उल्लेख हैं। यथा- चरक, चौरिक, धर्मसंडिक, मिच्कुण्ड, पण्डुरंग, गौतम गौवृती गृहधर्मी, धर्म-चिन्तक, अविरुद्ध, बुद्ध श्रावक, रक्तपट आदि । 25 व्याख्या साहित्य में जाकर इनकी संख्या और बढ़ जाती है। 26 इन सबकी मान्यताओं को यदि व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया जाय तो कई नई धार्मिक और दार्शनिक विचारधाराओं का पता चल सकता है। संकट के समय में कई देवताओं को लोग स्मरण करते थे। उनके नाम इन कथाओं में मिलते हैं।27 आगे चलकर तो एक ही प्राकृत कथा में विभिन्न धार्मिक एवं उनके मत एकत्र मिलने लगते हैं। 23 प्राकृत की इन कथाओं में लोक-जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध था । अतः इनमें लोक देवताओं और लौकिक धार्मिक अनुष्ठानों की भी यप्त सामग्री प्राप्त है | 29 यद्यपि आगम साहित्य में प्राप्त जैन दर्शन के स्वरूप पर पं. मालवणिया जी ने प्रकाश डाला है | 30 किन्तु इन कथाओं की भी धर्म और दर्शन की दृष्टि से समीक्षा की जानी चाहिए।
स्थापत्य एवं कला :
आगमों की इन कथाओं में कुछ कथा - नायकों की गुरुकुल शिक्षा के वर्णन हैं। मेघकुमार की कथा में 72 कलाओं के नामोल्लेख हैं । अन्य कथाओं में भी इनका प्रसंग आया है। श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री ने इन सभी कलाओं का परिचय अपनी भूमिका में दिया है। इन 72 कलाओं के अन्तर्गत भी संगीत, वाद्य, नृत्य, चित्रकला, आदि प्रमुश कलाएं हैं, जिनमें जीवन में बहुविध उपयोग होता है । इस दृष्टि से राजा प्रदेशी की कथा अधिक महत्वपूर्ण है । उसमें बत्तीस प्रकार की नाट्यविधियों का वर्णन है। टीका साहित्य में उनके स्वरूप आदि पर विचार किया गया है। 31 ज्ञाताधर्मकथा में मल्ली की कथा चित्रकला की प्रभूत सामग्री उपस्थित करती है । मल्ली की स्वर्णमयी प्रतिमा का निर्माण मूर्तिकला का उत्कृष्ट उदाहरण है । स्थापत्यकला की प्रचुर सामग्री राजा प्रदेशी की कथा में प्राप्त है। राजाओं के प्रासाद वर्णनों एवं श्रेष्ठियों के वैभव के दृश्य उपस्थित करने आदि में भी प्रासादों एवं क्रीड़ागृहों के स्थापत्य का वर्णन किया गया है। इस सब सामग्री को एक स्थान पर एकत्र कर उसको प्राचीन कला के सन्दर्भ में जाँचा-परखा जाना
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