Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur
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कथानक तरह-तरह के/25
19. कल्पसूत्रम्- सं. म. विनयसागर, जयपुर। 20. उत्तराध्ययनसूत्र, अध्ययन 22वा । 21. शास्त्री, देवेन्द्रमुनिः भगवान अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्रीकृष्ण: एक अनुशीलन, पुस्तक द्रष्टाव्य। 22. वही, भगवान पार्श्व- एक समीक्षात्मक अध्ययन ।। 23. धम्मकहाणुओगो, मूल, पृ. 54-85 । 24. वही, पैराग्राफ 358, स्थानांग, अ.1, सू.76 । 25. शास्त्री, देवेन्द्रमुनिः भगवान महावीर- एक अनुशीलन, आदि पुस्तकें। 26. धम्मकहाणुओगो, मूल, पृ. 114-1381 27. आवश्यकचूर्णि, पृ. 210 आदि एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित आदि में। 28. पउमचरियं, 4.35-55 गाथा एवं द्रष्टव्य लेखक का निबन्ध 'बाहुबली स्टोरी इन प्राकृत
लिटरेचर' गोम्मटेश्वर कोमेमोरेशन वोल्यूम, 1981 में प्रकाशित, पृ.76-821 29. वसुदेवहिण्डी, प्रथम खण्ड, पृ.1861 30. मालवणिया, पं. दलसुख, 'द स्टोरी ऑफ बाहुबली' सम्बोधि, पार्ट 6, भा. 3-4, 1978 । 31. धम्मकहाणुओगो, मूल पैराग्राफ 570-572 पृ.1341 32. वही, पैर., 578 पृ. 136 तथा जैनागम-निर्देशिका पृ. 685 आदि। 33. वही पैरा, 583, 584 पृ. 1371 34. देखें- शास्त्री, देवेन्द्रमुनिः ऋषभदेव- एक परिशीलन, पृ.181-2241 35. देखें- मुनि महेन्द्र कुमार 'प्रथम': तीर्थंकर ऋषभ और चक्रवर्ती भरत, कलकत्ता, 1974 पृ.149
आदि। 36. भगवतीसूत्र, शतक 11, उ. ।।। 37. गायाधम्मकहा, 5वाँ अध्ययन 38. स्थानांगसूत्र, स्थान 10. सू.1131 39. जैन, डा. हीरालालः सुदसणचरिउ, भूमिका, पृ. 24-25 ! 40. धम्मकहाणुओगो, मूल, श्रमण कथानक, पृ.13 पैरा 581 41. जातक, खण्ड 4 (हिन्दी अनुवाद), सं. 498। 42. सरपेन्टियर, 'द उत्तराध्ययनसूत्र' पृ.451 । 43. घाटगे; ए.एम. :'ए फ्यू परेलल्स इन जैन एण्ड बुद्धिस्ट वर्क्स' नामक निबन्ध, एनल्स आफ द
भंडारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्सटीट्यूट, भाग 17 (1935-36) पृ. 3421 4६, धम्मकहाणुओगो, मूल, श्रमण कथा, पृ.23 आदि। 45. महातग्ग, पब्बज्जाकथा, नालन्दा संस्करण, पृ.18-211 b46. कुमारस्वामी, ए.के.: द यक्षाज, पृ. 121 47. जैन, डा. जगदीशचन्द्रः जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ. 4401 48. द्रष्टव्य लेखक का निबन्ध- 'सुकुमाल स्वामी कथा- एक अध्ययन', प्राच्य विद्या सम्मेलन,
धारवाड़. 1976 में प्रस्तुत । 49. हरिवंशपुराण, सर्ग 55, श्लोक 29-441 50. महाजनक जातक (हिन्दी अनुवाद. सं. 539)। 51. सुह वसामो जीवामो जेसि मो नत्थी किंचण।
मिहिलाए डज्डामाणीए न मे डज्झई किंचण।। - उत्त.9.14
यही- महाजनक जातक में भी गाथा 1251 52. पंटम भद्र अधनस्स अनागारस्स भिक्खुनो।
नागम्हि डह्यमानम्हि नास्स किंचिं अडह्यथ ।। -सोनकजातक 5291 53. महाभारत. शान्तिपर्व, अ.276, श्लोक 4। 54, आचार्य तुलसी: उत्तराध्ययन-एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृ.3551
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