Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ कथानक तरह-तरह के/21 2. धर्मरुचि अनगार की करुणा। 3. सुकुमालिका का दुर्भाग्य एवं निदान । 4. द्रौपदी की कथा (पांच पाण्डवों से विवाह)। 5. कच्छुल्ल नारद की भूमिका । 6. श्रीकृष्ण और पाण्डव-मैत्री। 7. पाण्डवों का युद्ध। 8. द्रौपदी-पुत्र पाण्डुरोन का राज्य। 9. द्रौपदी की प्रव्रज्या एवं साधना द्वारा निर्वाण । इस कथानक में महत्वपूर्ण बात निदान की है। जहरीला आहार मुनि को देने से नागश्री अगले जन्म में सुकुमालिका होती है, जहाँ उसे परिवार, पति आदि सबकी उपेक्षा सहनी पड़ती है। सुकुमालिका को साधक जीवन का अवसर मिला तो भी उसने भौतिक सुखों के आकर्षण में ऐसा निदान किया कि अगले जन्म ( द्रौपदी) में पांच पतियों का दासत्व स्वीकारना पड़ा। किन्तु फिर भी वह साधना में जुटी रही। जिसकी अन्तिम परिणति निर्वाण में हुई। अतः यह कथा स्त्री की सतत-साधना द्वारा अंतिम लक्ष्य प्राप्त करने की कथा है। इस कथा का परवर्ती जैन साहित्य में काफी विकास हुआ है। डा. हीरालाल जैन ने इस कथा के उत्स एवं विकास पर प्रकाश डाला है।62 प्रकारान्तर से इस कथा में श्रीकृष्ण के नरसिंहावतार का भी वर्णन है। यह शोध का विषय है कि श्रीकृष्ण के साथ यह प्रसंग कब और किस आधार पर जुड़ा है। सुभद्रा श्रमणी की कथा के प्रसंग में ज्ञात होता है कि उसके मन में अनेक बालकों की माँ होने की लालसा थी। उसका बहुपुत्रिका नाम ही प्रचलित हो गया था। सोमा नामक युवति के जन्म में उसने 16 बार प्रसव में 32 बालकों को जन्म दिया। किन्तु वह उन बालकों की सम्हाल करते-करते दुखी हो गयी। अन्ततः उसने प्रव्रज्या धारण कर इस दुख से छुटकारा प्राप्त किया और साधना करके सिद्धि प्राप्त की। श्रमणी-कथाओं में जयन्ती का कथानक भी ध्यान आकर्षित करता है। भगवान महावीर को प्रथम वसति प्रदान करने वाली यही जयन्ती श्रमणोपासिका थी। महावीर और जयन्ती के बीच तत्वचर्चा भी हुई है। आगम ग्रन्थों में श्रमणी कथानकों के विवरण को देखने से ज्ञात होता है कि उनका अंकन अपेक्षाकृत आगमों में कम हुआ है। महावीर की शिष्य परम्परा में साध्वियों की संख्या अधिक मानी जाती है। उस दृष्टि से कथानकों में उनका प्रतिनिधित्व कम हुआ है। साध्वीसंघ की प्रमुखा एवं महावीर की प्रथम शिष्या चन्दना सती का तो आगम ग्रन्थों में कथा के रूप में उल्लेख भी नहीं है। केवल प्रथम शिष्या के रूप में नाम अंकित है।63 जबकि व्याख्या साहित्य से ज्ञात होता है कि चन्दना का महावीर के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है ! चन्दना का कथानक आगमों में क्यों छूट गया इस पर चिन्तन किया जाना आवश्यक है। वर्णनों में "जाव" की परम्परा रही है। कहीं इस संक्षेपीकरण में चन्दना का कथानक लुप्त न हो गया हो, यह देखने की बात है। आगमों में वर्णित श्रमणी-कथाओं की बौद्ध भिक्षुणियों के जीवन के साथ तुलना करने से दोनों के उज्ज्वल चरितों पर प्रकाश पड़ सकता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128