Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 30
________________ 20/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन अर्जुन मालाकार मुलत: एक यक्षकथा है। यक्ष की आराधना एव उसके प्रभाव के साथ-साथ क्रूर से क्रूर व्यक्ति कैसे सयम एवं आध्यात्म के मार्ग में आ सकता है, इस बात को उजागर करना ही कथा का मूल उद्देश्य है। जंगल में रहने वाले क्रूर दस्यु वाल्मीकि के हृदय-परिवर्तन की घटना रामायण में प्राप्त है। बौद्ध साहित्य में अंगुलिमाल का कथानक व्यापक था। उसी कोटि का यह अर्जुन मालाकार का कथानक है। इस कथानक में जो परकाया प्रवेश करके अपने प्रभाव को दिखाने की बात यक्ष ने की है, वह अभिप्राय भारतीय कथा साहित्य में बहुत लोकप्रिय हुआ है।57 विद्वानों ने इस मोटिफ का विशेष अध्ययन किया है।58 इस कथा के अन्तर्गत सुदर्शन नामक साधक की दृढ़ता को भी प्रकट किया गया है। सार्थवाहपुत्र धन्य अनगार की कथा उत्कृष्ट तपस्या का उदाहरण है। तपश्चर्या में शरीर की अवस्था का वर्णन अनेक उपमाओं एवं रूपको के द्वारा किया गया है। बौद्ध साहित्य में भगवान् बुद्ध की तपश्चर्या का भी इसी प्रकार वर्णन प्राप्त है। किन्तु जैन कथा का यह वणन आधेक सजीव है। उत्तराध्ययनसूत्र में वर्णित हरिकेशी मुनि की कथा तत्कालीन जातिवाद की उग्रता के प्रति विराध को प्रकट करने के लिए प्रस्तुत की गयी है। चाण्डाल एवं ब्राह्मण इन दोनो जातियों का श्रमण जीवन में कोई महत्व नहीं होता है। महत्व होता है वहाँ साधना का ! इसी तरह इस कथा में हिंसक यज्ञों की व्यर्थता को उजागर किया गया है। इसके लिए एक यक्ष को मार यम बनाया गया है। प्रकारान्तर से दान की महिमा और उसके उपयुक्त क्षेत्र का प्रतिपादन भी इस कथा के माध्यम से हुआ है। इसी प्रकार की कथा मातंग जातक में भी वर्णित है। दोनों कथाओं का तुलनात्मक अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ का आयोजन, चाण्डाल मुनियों की उपेक्षा एवं उनसे घृणा, जातिवाद का निरसन तथा दान की वास्तविक उपयोगिता दोनों में समान है। फिर भी कथा की संघटना में अन्तर हैं। विद्वानों का मत है कि बोद्ध कथा में दा कथाएँ मिली हुई है तथा वह मिश्रित है अत: वह बाद की है। जैन कथा प्राचीन है।०० जेन कथा में ब्राह्मणों के प्रति उतना कटु एवं उग्र दृष्टिकोण नहीं है, जितना बौद्ध कथा में है। धम्मकहाणओगो में श्रमण कथानक खण्ड में इन कथाओं के अतिरिक्त अन्य भी कई कथाएं संकलित हैं। उनमें शिवराज-ऋषि (पृ.133) जिनपालित जिनरक्षित (प्र.140), उदक पेढाल पुत्र (पृ.148), धन सार्थवाह कथानक (पृ.159) आदि महत्वपूर्ण कथानक है ! इनसे प्राकृत कथा साहित्य के कई रूप प्रकट होते हैं। ये श्रमण कथानक जैन परम्परा में श्रमणो की दीक्षा, परीपह-जया, तपश्चर्या एवं ज्ञान, ध्यान तथा चरित्र आदि के कई पक्षों को प्रकट करते है। किन्तु इसके साथ ही इनका कथात्मक महत्व भी कम नहीं है। उस पर अभी बहुत कम अध्ययन किया गया है। इन कथाओं के उद्गम स्थान तथा विकास-क्रम को खोजने की भी आवश्यकता है। बौद्ध कथाओं के साथ इनकी तुलना करना जरूरी है। श्रमणी कथानक : धम्मकहाणुओगो में प्रमुख नौ श्रमणियों के कथानक सम्मिलित हैं। इनमें द्रौपदी का कथानक सबसे बड़ा है। उसमें निम्न कथा-घटनाएं सम्मिलित हैं 1. नागश्री ब्राह्मणी की कथा ( मुनि आहार में दोष ) ! Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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