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18/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन
1. मदनरेखा के पुत्र को जंगल से ले जाकर पद्मरथ राजा ने उसका नाम नमि रखा।
वह मिथिला का राजा बना। 2. नमि एक बार दाहज्वर से ग्रस्त हुआ। उस समय उसने रानियों के हाथों के कंगनों के
द्वन्द्व से शिक्षा ग्रहण कर एकाकी जीवन जीने का निश्चय किया। 3. नमि जब प्रव्रज्या-ग्रहण के लिए निकल रहा था तब इन्द्र ने ब्राहमण का रूप धारणकर
उनके निश्चय की परीक्षा ली। 4. 'मिथिला का वैभव जल रहा है इस सूचना से भी नमि राजा अनासक्त रहे।
उत्तराध्ययनसूत्र की यह कथा बौद्ध साहित्य में भी प्राप्त है। महाजनक जातक में इसी प्रकार की कथा है।50 यद्यपि उसमें कथावस्तु की कुछ भिन्नता है, फिर भी दोनों कथाओं का प्रतिपाद्य एक है। कुछ समानताएँ द्रष्टव्य हैंउत्तराध्ययानसूत्र
महाजनक जातक 1- प्रतिबुद्ध होने के कारण (क) कंगनों की द्वन्द्वता के दुःख से (क) फलयुक्त वृक्ष की दुर्दशा से शिक्षा
शिक्षा (ख) कंगन के द्वन्द्र से शिक्षा (ग) दोनों आँख से देखने में भ्रम होने
की शिक्षा 2- 'अकेले में सुख हैं की स्वीकृति 3- समृद्ध मिथिला को त्याग कर प्रव्रज्या लेने __का निर्णय 4- लमि के निश्चय की परीक्षा लेना (क) इन्द्र द्वारा
देवी सीवली द्वारा 5- "मिथिला जल रही है" के द्वारा राजा वही
को प्रलोभन देना 6- मिथिला के जलने पर भी नमि का कुछ वही
नहीं जलता151 7- जैन कथानक में उपदेशतत्व अधिक है। कुछ कम है।
सोनक जातक (सं. 529 ) में इस कथा का कुछ साम्य है। प्रत्येकबुद्ध सोनक यही कहता है कि साधु के लिए नगर में यदि आग भी लग जाय तो उसका उसमें कुछ नहीं जलता है।52 महाभारत में मण्डव्यमुनि और जनक के संवाद में भी राजा जनक ने यही कहा है कि मिथिला के प्रदीप्त होने पर भी मेरा कुछ नहीं जलता है। इससे ज्ञात होता है कि मिथिला के राजा नमि अथवा जनक का आसक्ति भाव प्राचीन भारत की विचारधाराओं में प्रचलित था। विष्णुपुराण में भी कहा गया है कि मिथिला के सभी राजा आत्मवादी होते हैं।54 नमि राजा के कथानक की इन तीनों परम्पराओं में जातक कथा अधिक प्राचीन प्रतीत होती है। क्योंकि उसमें कथातत्व अधिक है, उपदेशतत्व कम है। जबकि जैन कथानक में कथा का निर्माण टीका साहित्य में हुआ
वही
वही
वही
उत्तराध्ययनसूत्र में दो नमि राजाओं की प्रव्रज्या का वर्णन है। एक नमि तीर्थंकर हैं, दूसरे
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