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16/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन
(ग) चित्त-सम्भूत
चित्त-सम्भूत (घ) देवलोक प्राप्ति
ब्रह्मलोक प्राप्ति (ड) सेठ-पुत्र एवं राजपुत्र के रूप में जन्म पुरोहित एवं राजपुत्र के रूप में जन्म। 4. सम्भूत के जीव ब्रह्मदत्त को नरक का निदान सम्भूत के जीव ब्रह्मलोकगामी
( यह कर्म-सिद्धान्त की परम्परा में भेद के कारण है। 5. केवल कथानक में ही नहीं गाथाओं में भी पर्याप्त समानता है। यथाउवणिज्जई जीवियमप्पमायं,
उपनीयती जीवितं अप्पमायु, वण्णं जरा हरइ नरस्स रायं ।
वण्णं जरा हन्ति नरस्य जीवितो। पंचालराया ! वयणं सुणाहि,
करोहि पंचाल मम एत वाक्यं, मा कासि कम्माइं महालयाईं।।
मा कासि कम्म निरयूप पत्तिया ।। __ (उत्त. 13/26)
(जातक 498, गा.20) उत्तराध्ययनसूत्र की कथा-वस्तु का गठन जातक की कथावस्तु की अपेक्षा अधिक संक्षिप्त है तथा उत्तराध्ययन की भाषा भी प्राचीन है। अतः विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि उत्तराध्ययन की यह कथा प्राचीन है, भले ही उसने इसे लोक प्रचलित कथा में से ग्रहण किया हो। इस कथा का मूल अभिप्राय तो प्रारम्भ में निम्न जाति के लोगों को भी धर्म और शिक्षा का अधिकार देना था। किन्तु बाद में कथा का विस्तार होने से इसमें कई उद्देश्य सम्मिलित हो गये
____ अरिष्टनेमि के तीर्थ में दीक्षा लेने वाले श्रमणों में श्रीकृष्ण के लघुभ्राता गजसुकुमार का कथानक बहुत रोचक है। देवकी छह श्रमणों को अपने यहाँ देखकर उनकी सुन्दरता के सम्बन्ध में जिज्ञासा करती है। उसे पता चलता है कि वे उसके ही पुत्र हैं, जिन्हे अपहरण कर हरिणेगमेषी नामक देव ने सुलसा गाथापत्नी को दे दिया था। इससे देवकी के मन में पुनः बालक्रीड़ा देखने की लालसा होती है। हरिणेगमेषी देव की आराधना से देवकी को गजसुकुमार नामक पुत्र प्राप्त होता है। ___ गजसुकुमार की युवावस्था में श्रीकृष्ण उसका विवाह सोमिल ब्राह्मण की कन्या से करना चाहते हैं। किन्तु अरिष्टनेमि की धर्मदेशना से गजसुकुमार मुनि बन जाते हैं। तब अपमानित सोमिल ब्राह्मण द्वारा गजसुकुमार मुनि पर उपसर्ग किया जाता है। किन्तु वे मुनि उपसर्ग सहन कर मुक्ति प्राप्त करते हैं।44 गजसुकुमार की यह कथा बौद्ध साहित्य में वर्णित यश की प्रव्रज्या से तुलनीय है।45 इस कथा में कई कथा तत्व सम्मिलित हैं। यथा
(1) हरिणेगमेषी द्वारा सन्तान का अपहरण एवं प्रदान (2) माता द्वारा पुत्र-प्राप्ति की आकांक्षा और उसके लिए प्रयत्न (3) पुत्र का जन्म एवं उसका लालन-पालन। (4) धर्मदेशना द्वारा गृहस्थ-जीवन का त्याग। (5) पूर्वजीवन के बैरी द्वारा मुनि-जीवन में उपसर्ग (6) उपसर्गों को सहन करते हुए मुक्ति।
सन्तान-प्राप्ति एवं उसके अपहरण के सम्बन्ध में हरिणेगमेषी नामक देव का भारतीय साहित्य में पर्याप्त उल्लेख है।46 डा. जगदीशचन्द्र जैन ने इस सम्बन्ध में विशेष प्रकाश डाला है।47 भगवान् महावीर की जीवनी में भी यह घटना प्राप्त है। देवकी के पुत्रों का अपहरण
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