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कथानक तरह-तरह के/15
संग्रहीत हैं। यद्यपि हजारों की संख्या में व्यक्तियों ने दीक्षाएँ लेकर श्रमण-जीवन अगीकार किया था। किन्तु आगम ग्रन्थों में कुछ प्रमुख श्रमणों की कथाएँ ही उदाहरण के रूप में प्रस्तुत की गयी हैं। इनमें अरिष्टनेमि और महावीर तीर्थंकर के तीर्थ में दीक्षा प्राप्त श्रमणों की कथाएँ अधिक मात्रा में अंकित हुई है। ये कथाएं विभिन्न आगमों में प्राप्त हैं, जिन्हें मनि 'कमल जी ने तीर्थंकर क्रम से व्यवस्थित किया है। इन सभी श्रमणों की कथाओं का गहराई से मुल्यांकन कर पाना यहाँ सम्भव नहीं है। कुछ कथानकों पर दृष्टिपात किया जा सकता है।
विमलनाथ तीर्थंकर के तीर्थ में बलराजा और प्रभावती रानी के महाबल नामक पुत्र का जन्म होता है। स्वप्नदर्शन, गर्भरक्षा, जन्मोत्सव, महाबल की शिक्षा आदि का वर्णन वर्णकों के अनुसार है। धर्मघोष साधु से दीक्षा लेकर महाबल अगले जन्म में वणियाग्राम में सेठ कुल में जन्म लेता है, जहाँ उसका नाम सुदर्शन रखा जाता है। यह सुर्दशन समय आने पर महावीर तीर्थ में दीक्षित होता है और तपश्चर्या के उपरान्त मुक्ति प्राप्त करता है।36 सुदर्शन नामक सेट की कथा जैन साहित्य में बहुत प्रचलित है। णायाधम्मकहा में सुदर्शन गृहस्थ एक जैनाचार्य से दीक्षा ग्रहण करता है।37 स्थानागसूत्र में पाँचवें अन्तकृत केवली के रूप में सुदर्शन का उल्लेख है |38 प्राकृत एवं अपभ्रंश के कथाग्रन्थों में भी सुर्दशन नाम नायक के रूप में प्रसिद्ध रहा है।39
मुनिसुव्रतनाथ तीर्थंकर के तीर्थ में कार्तिक सेठ एवं गंगदत्त गाथापति की दीक्षा का कथानक सामान्य ढंग से प्रस्तुत किया गया है। एक हजार आठ वणिक पुत्रों के साथ कार्तिक सेठ की दीक्षा का वर्णन प्रभावोत्पादक है।
अरिष्टनेमि के तीर्थ में चित्त एवं संभूति की कथा का वर्णन उत्तराध्ययन में हुआ है। कुल 35 गाथाओं में यह कथा संक्षेप में कही गयी है। इस कथा का विस्तार उत्तराध्ययनसूत्र की सुखबोधाटीका में हुआ है। यह दो भाइयों के अटूट प्रेम की कथा है। परस्पर इस अनुराग के कारण वे दोनों 6 भवों तक एक-दूसरे के हित की चिन्ता करते रहते हैं। वाराणसी में भूतदत्त चाण्डाल के चित्त और सम्भूति नामक दो पुत्र थे। वे संगीतकला में निष्णात थे तथा रूप और लावण्य के भी धनी थे किन्तु चाण्डाल जाति का होने के कारण उन्हें समाज में तिरस्कृत होना पड़ता है। अन्त में ते दीक्षा धारण कर स्वर्ग प्राप्त करते हैं। तब उनके अगले भव की परम्परा चलती है।
दो भाइयों के स्नेह और निम्न जाति में उत्पन्न होने से निरादर- इन बिन्दुओं को लेकर प्राचीन समय से ही कथाएँ कही-सुनी जाती रही हैं। उत्तराध्ययन में इस कथा को जिस संक्षिप्त शैली में कहा गया है, उससे प्रतीत होता है कि यह कथा जनमानस में अतिप्रचलित थी। बौद्ध कथाओं में भी इस कथा को स्थान प्राप्त है। चित्त-सम्भूत नामक जातक कथा में यह कथा वर्णित है।41 दोनों कथाओं की तुलना की दृष्टि से निम्न बिन्दु द्रष्टव्य हैंउत्तराध्ययनसूत्र
जातक कथा 1. कथा मूलतः पद्य में थी. जिसे टीका में गद्य गद्य-पद्य मिश्रित शैली में कथा है।
में लिखा गया है। 2. दोनों भाइयों में अटूट प्रेम 3. पूर्वभव में समानता
वही (क) युगल मृग
वही (ख ) हंस युगल
बाज युगल
वही
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