Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 23
________________ कथानक तरह-तरह के/13 5. मल्ली के पिता राजा कुम्भ इन छहों राजकुमारों के आक्रमण से दुखी। उनकी इस चिन्ता को पुत्री मल्ली द्वारा निवारण करने की प्रतिज्ञा और पिता को दिलासा। 6. मल्ली द्वारा पहले से तैयार की गयी अपनी स्वर्ण-प्रतिमा से सड़े भोजन की दुर्गन्ध के द्वारा उन छहों राजकुमारों को प्रतिबोधन देना। 7. प्रतिबोधन से जाति-स्मरण ज्ञान एवं वैराग्य प्राप्ति के द्वारा मल्ली के साथ ही छहों राजकुमारों की भी दीक्षा। 8. मल्ली द्वारा चैत्र शुक्ला चतुर्थी को निर्वाण की प्राप्ति। भारतीय कथा-साहित्य के सन्दर्भ में देखा जाय तो इस मल्ली कथा में मूल अभिप्राय है'स्त्री के रूप पर आसक्त पुरुषों को किसी प्रभावशाली उपाय के द्वारा प्रतिबोधन देना। यह अभिप्राय प्राचीन समय के कथा-साहित्य में प्रयुक्त होता रहा है।12 बौद्ध साहित्य में भिक्षुणी शुभा की कथा भी इसी प्रकार की है। उस पर एक व्यक्ति आसक्त हो गया। वह शुभा के नेत्रों की बहुत प्रशंसा करता था। एक दिन उससे परेशान होकर शुभा ने अपने नाखूनों से अपने नेत्र निकालकर उस कामुक व्यक्ति के हाथ पर रख दिये और कहा कि जिन आँखों पर तुम मोहित थे, उन्हें ले जाओ। इसी तरह की अन्य कथाएँ भी प्राप्त है। उत्तराध्ययनसूत्र में राजीमती ने रथनेमि को वमन के उदाहरण द्वारा प्रतिबोधित किया।14 अख्यानमणिकोश की रोहिणी नामक कथा में रोहिणी शीलवती ने अपने ऊपर आसक्त राजा को विभिन्न दृष्टान्त सुनाकर प्रतिबोधित किया।15 रयणचूडरायचरियं में भी इस प्रकार की कथाएं हैं।16 कथासरितसागर में भी इस अभिप्राय को व्यक्त करने वाली कथाएं प्राप्त है। किन्तु इन कथाओं के अवलोकन से स्पष्ट है कि मल्ली की कथा अधिक व्यापक और प्रभावशाली है। इसमें प्रतीकों की योजना अधिक संवेदनशील है। स्वर्णप्रतिमा का रूप नारी-सौन्दर्य एवं उसकी अभिजात्य स्थिति का प्रतीक है। प्रतिमा के ऊपर छेद पर ढका हुआ कमल बाहरी सौन्दर्य के आर्कषण को व्यक्त करता है तथा प्रतिमा के भीतर भोजन की सड़ांध नारी-शरीर के भीतरी अशुचिता को व्यक्त करने के साथ-साथ कमल के नीचे रहने वाले कीचड़ को भी उद्घाटित कर देती है। इस दुर्गन्ध से राजाओं के द्वारा मुँह ढककर, मुँह फेरकर खड़े हो जाने की घटना18 संयमित होकर आसक्ति से विमुख हो जाने की वृत्ति को प्रकट कर देती है। तीर्थकरचरित: आगम ग्रन्थों में चौबीस तीर्थंकरों के सम्बन्ध में उनकी जीवनी सम्बन्धी कोई विशेष सामग्री नहीं है। परवर्ती ग्रन्थों में तीर्थंकरों के चरितों का विकास हुआ है। 'अरिट्ठनेमि और पार्श्वनाथ का संक्षिप्त चरित कल्पसूत्र में है। अरिष्टनेमि के इस चरित में राजीमती के विवाह का प्रसंग एवं पशुहिंसा के प्रति करुणा वाला प्रसंग कल्पसूत्र में नहीं है। उत्तराध्ययन सूत्र में इसकी संक्षिप्त जानकारी है।20 किन्तु व्याख्या साहित्य में इसका विस्तार है।21 यही स्थिति पार्श्वनाथ के चरित के साथ है। इनके सम्बन्ध में पर्याप्त लिखा जा चुका है।22 भगवान महावीर का चरित कुछ विस्तार से आगम ग्रन्थों में प्राप्त है। आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध और कल्पसूत्र में महावीर के जीवन का अधिकांश भाग वर्णित है। कुछ घटनाएं भगवतीसूत्र और औपपातिकसूत्र से ज्ञात होती हैं।23 स्थानांगसूत्र से ज्ञात होता है कि महावीर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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