Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 19
________________ आगम कथा साहित्य/9 राजा 37.इषुकार राजा, 38.स्कन्दक, 39. मोद्गल, 40.शिवराजर्षेि, 41.उदायन राजा, 42. जिनपपाल-जिनरक्षित, 43. कालासेवेसियपुत्र 44. उदक पेढाल पुत्र, 45. नदीफलज्ञात, 46.धन्य सार्थवाह, 47.कालोदाई, 48. पुण्डरीक-कण्डरीक एवं 49. स्थविरावली। (ग) श्रमणी कथानक (मूल पृ.177-240 ) हिन्दी संस्करण, भाग 2, तृतीय स्कन्ध, पृ.। से 124 1.द्रोपदी कथानक, 2. पद्मावती आदि, 3. पोटिटला कथानक, 4.काली श्रमणी आदि, 5.राजी श्रमणी 6.भूता श्रमणी, 7.सुभद्रा कथानक, 8. नन्दा आदि श्रमणी एवं 9.जयन्ती कथानक। (घ) श्रमणोपासक कथानक (मूल पृ. 241-378) हिन्दी संस्करण, भाग 2, चतुर्थ स्कन्ध1.सोमिल ब्राह्मण, 2. प्रदेशी कथानक, 3.तुगिया नगरी के श्रमणोपासक, 4.नन्द मणिकार, 5.आनन्द गाथापति, 6.कामदेव, 7.चूलनीपिता, 8.सुरादेव, 9. चुल्लशतक, 10.कुण्डकोलिय, 11. सद्दालपुत्र 12. महाशतक, 13.नन्दिनीपिता, 14. सलिहीपिता, 15.ऋषभद्रापुत्र, 16.शंख श्रमणोपासक, 17. वरुण-नाग, 18.सोमिल ब्राह्मण 19. श्रमणोपासकों की देवलोक में स्थिति, 20. कूणिक, 21. अम्बड़ परिव्राजक, 22. उदाई, भूतानन्द एवं हस्ति राजा तथा 23. मदुय श्रमणोपासक। (इ. ) निन्हव-कथानक (मूल पृ.379-418) हिन्दी संस्करण, भाग 2, षष्ठ स्कन्ध1.श्रेणिक-चेलना 2.रथमूसल-संग्राम, 3. काल आदि की मरणकथा, 4. महाशिलाकंटक-संग्राम, 5.विजय-चोर, 6. मयूरी अंडक, 7.कूर्मकथा, 8.रोहिणिकथा, 9.अश्वकथा, 10. मृगापुत्र, 11.उज्झितक कथा, 12. अभग्नसेन, 13. शकटकथा, 14.वृहस्पतिदत्त कथा, 15.नंदीवर्धन कुमार, 16. अम्बरदत्त कथा, 17.सोरियदत्त, 18. देवदत्ता कथानक, 19. अंजू कथानक, 20. बाल तपस्वी पूरण एवं 21. महाशुक्ल देव की कथा। इस प्रकार धम्माकहाणुओगो के मूल संस्करण के लगभग 650 पृष्ठों में आगमों के मूल ग्रन्थों में प्राप्त धर्मकथाओं के मूल प्राकृत पाठ का संकलन है। कथाओं का कौन-सा अंश किस आगम से लिया गया है, उसके सन्दर्भ में भी दिये गये हैं। कथाओं को विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत रखा गया है, ताकि मूल पाठ से ही कथा के कथानक को समझा जा सके। इस सामग्री का संकलन, संशोधन एवं उसे व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करने में मुनिश्री का अथक परिश्रम एवं आगम-अध्ययन में अगाध ज्ञान स्पष्ट रूप से झलकता है। सन्दर्भ 1. सुयसुत्तगंध सिद्धंतपवयणे आणवयण उवएसे। पण्णवण आगमे या एगट्ठा पज्जवासुत्ते ।। - अयोगद्वार, 4 2. भगवं च ण अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खइ। -समवामांग, पृ.60 3. दोशी, पं. बेघरदासः जैन साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग 1, पृ.511 4. जैन, डा. हीरालालः भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान,पुस्तक द्रष्टव्य । 5. शास्त्री, देवेन्द्र मुनिः जैन आगम साहित्यः मनन और मीमांसा, पृ.35 । 6. जैन, डा. जगदीशचन्द्रः जैन आगमों में भारतीय समाज, पुस्तक द्रष्टव्य। 7. आवश्यकनियुक्ति, 363-377 ! Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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