Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 17
________________ आगम कथा साहित्य/7 है। इनमें अर्जुन मालाकार की कथा तथा सुर्दशन सेठ की अवान्तर-कथा ने पाठकों का ध्यान अधिक आर्कषित किया है। अतिमुक्तकुमार की कथा बालकथा की उत्सुकता को लिए हुए है। इन कथाओं के साथ राजकीय परिवारों के व्यक्तियों का सम्बन्ध जुड़ा हुआ है। साधनों के अनुभवों का साधारणीकरण करने में ये कथाएँ कुछ सफल हुई हैं। अनुत्तरोपपातिकदशाइस ग्रन्थ में उन लोगों की कथाएँ है, जिन्होंने तपःसाधन के द्वारा अनुत्तर विमानों (देवलोकों) की प्राप्ति की है। कुल 33 कथाएँ हैं, जिनमें से 23 कथाएं राजकुमारों की है और 10 कथाएं सामान्य पात्रों की। इनमें धन्यकुमार सार्थवाह-पुत्र की कथा अधिक हृदयग्राही है। विपाकसूत्रविपाक सूत्र में कर्म-परिणामों की कथाएँ है।35 पहले स्कन्ध में बुरे कर्मों के दुखदायी परिणामों को प्रकट करने वाली दश कथाएँ हैं। मृगापुत्र की कथा में कई अवान्तर कथाएं गुफित है। उद्देश्य की प्रधानता होने से कथा-तत्व अधिक विकसित नहीं हुआ है। किन्तु वर्णनों का आर्कषण बना हुआ है। अति-प्राकृत तत्वों का समावेश इन कथाओं को लोक से जोड़ता है। व्यापारी, कसाई, पुरोहित, कोतवाल, वैद्य, धीवर, रसोइया, वेश्या आदि पात्रों से सम्बन्ध होने से इन प्राकृत कथाओं में लोकतत्वों का समावेश अधिक हुआ है। दूसरे स्कन्ध की कथाएँ अच्छे कर्मों के परिणाम को बताने वाली हैं। सुबाहु की कथा विस्तृत है। अन्य कथाओं में प्रायः वर्णक है। इस ग्रन्थ की कथाएं कथोपकथन की दृष्टि से अधिक समृद्ध हैं। उनकी इस शैली ने परवर्ती कथा साहित्य को भी प्रभावित किया है। हिंसा, चोरी, मैथुन के दुष्परिणामों को ये कथाएं व्यक्त करती हैं। किन्तु इनमें असत्य एवं परिग्रह के परिणामों को प्रकट करने वाली कथाएं नहीं हैं। सम्भवतः इस ग्रन्थ की कुछ कथाएं लुप्त भी हुई हों। क्योंकि नन्दी और समवायांगसूत्र में विपाकसूत्र की जो कथावस्तु वर्णित है उसमें असत्य एवं परिग्रह के दुष्परिणामों की कथाएं होने के उल्लेख है।36 उपांग आगम साहित्य : औपपातिकसूत्र में भगवान महावीर की विशेष उपदेश विधि का निरूपण है। गौतम इन्द्रभूति के प्रश्नों और महावीर के उत्तरों में जो सवांदतत्व विकसित हुआ है, वह कई कथाओं के लिए आधार प्रदान करता है। नगर-वर्णन, शरीर-वर्णन, आदि में आलंकारिक भाषा व शैली का प्रयोग इस ग्रन्थ में है। राजप्रश्नीयसूत्र में राजा प्रदेशी और केशी श्रमण के बीच हुआ संवाद विशेष महत्व का है। इसमें कई कथासूत्र विद्यमान है। इस प्रसंग में धातु के व्यापारियों की कथा मनोरंजक है। उसे लोक से उठाकर प्रस्तुत किया गया है। जम्बूद्वीप्रज्ञप्ति में यद्यपि भूगोल सम्बन्धी विवरण है किन्तु इसमें नाभि कुलंकर, ऋषभदेव तीर्थकर एवं भरत चक्रवर्ती की कथाओं का विवरण भी है। पौराणिक कथा-तत्वों के लिए इस ग्रन्थ की सामग्री उपयोगी है। निरयावलिया एवं कप्पिया आदि सूत्रों में राजा श्रेणिक, रानी चेलना, राजकुमार कुणिक की कथा विस्तार से है। इसमें सोमिल ब्राह्मण एवं सार्थवाह-पत्नी सुभद्रा की दो स्वतन्त्र कथाएँ भी हैं। अधिक संतान की चाह और उससे प्राप्त होने वाले दुःख को इस कथा ने रेखांकित किया है। पुष्पिका उपांग में अपने सिद्धान्त के महत्व को प्रतिपादित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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