Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 12
________________ 2/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन छिन्न-भिन्न होने लगा तब वीर-निवार्ण के 827-840 वर्ष के बीच में आचार्य स्कंदिल ने मथुरा में मुनिसंघ का एक सम्मेलन बुलाया, जिसमें उन्हीं ग्यारह आगमों को पुनः व्यवस्थित किया गया। वीर-निर्वाण 980 वर्ष में वल्लभी नगर में देवगिणी की अध्यक्षता में एक मुनि-सम्मेलन पुनः बुलाया गया। इस सम्मेलन में विभिन्न वाचनाओं का समन्वय करके आगमों को पहली बार लिपिबद्ध किया गया। श्वेताम्बर समादाय द्वारा मान्य वर्तमान में उपलब्ध अर्धमागधी आगम इसी सम्मेलन के प्रयत्नों का परिणाम है। इस समय तक ग्यारह प्रमुख अंग ग्रन्थों के अतिरिक्त आगम साहित्य के अन्य ग्रन्थ भी सकलित किये गये थे। कुल आगमों की संख्या 45 तय की गयी थी। इस तरह मोटे तौर पर तो आगमों का रचनाकाल महावीर का समय है। किन्तु उनका लेखन-काल ईसा की 4-5वीं शताब्दी है। इस एक हजार वर्ष के अन्तराल की संस्कृति आगमों में समायी हुई है। ___अर्धमागधी आगम साहित्य को कई भागों में विभक्त किया गया है। अंग ग्रन्थ 11 हैं, जिनमें आचारांगसूत्र, सूत्रकृतांगसूत्र आदि हैं। 12 उपांग ग्रन्थ है- औपपातिकसूत्र, राजप्रश्नीय आदि। छेद-सूत्र 6 है- निशीथसूत्र, आवश्यकसूत्र आदि। भूल सूत्र 4 है- उत्तराध्ययनसूत्र, दशवैकालिकसूत्र आदि। तथा 10 प्रकीर्णक और 2 चूलिका ग्रन्थ है। आगम ग्रन्थों का यह विभाजन एक ही समय में निश्चित नहीं हुआ है, पितु ईसा की 5वीं शताब्दी से 15वीं शताब्दी तक विषयवस्तु के अनुसार यह विभाजन होता रहा है। किन्तु आगम साहित्य का प्रमुख विषयों की दृष्टि से अनुयोगों में भी विभाजन हुआ है। यह विभाजन प्राचीन है। आर्यरक्षितसूरि ने आगम-साहित्य के जो चार भाग किये हैं वे इस प्रकार हैं:1. चरणकरणानुयोग - आचार, व्रत, चरित्र, संयम आदि का विवेचन । 2. धर्मकथानुयोग - धर्म को प्ररूपित करने वाली कथाओं का विवेचन। 3. गणितानुयोग - गणित सम्बन्धी विषयों का विवेचन। 4. द्रव्यानुयोग - छह द्रव्यों एवं नौ पदार्थों का विवेचन । दिगम्बर परम्परा में आगम साहित्य के अनुयोगों के नाम कुछ भिन्न हैं। यथा1. प्रथमानुयोग - महापुरुषों के जीवन चरित्र आदि। 2. करणानुयोग - लोक का स्वरूप एवं गणित आदि। 3. चरणानुयोग - आचारशास्त्र का निरूपण। 4. द्रव्यानुयोग - द्रव्य एवं पदार्थों का विवेचन । आगम-साहित्य की विषयवस्तु का यह मोटा-मोटा विभाजन है क्योंकि करणानुयोग के ग्रन्थों में भी धर्मकथा एवं द्रव्यों का विवेचन मिल जाता है। तथा द्रव्यानुयोग के ग्रन्थों में भी कुछ दृष्टान्त एवं कथाओं के संकेत प्राप्त होते हैं। फिर भी विषय के अध्ययन के लिए इस विभाजन में सुविधा है। इस वर्गीकरण के आधार पर अर्धमागधी आगम साहित्य के ग्रन्थों का विभाजन इस प्रकार किया जा सकता है1. घरणकरणानुयोग :- इसमें आचारांगसूत्र, प्रश्नव्याकरण, दशवैकालिकसूत्र, निशीथ, व्यवहार, बृहत्कल्प तथा आवश्यकसूत्र आदि ग्रन्थों को रखा जा सकता है। 2. धर्मकथानुयोग - इसमें ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृद्दशा, अनुत्तरोपपतिकदशा, विपाकसूत्र, औपपातिक, राजप्रश्नीय, निरयावलिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका तथा उत्तराध्ययनसूत्र आदि आगम ग्रन्थों को रखा जा सकता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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