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के रूप में हुआ है । यहाँ पर ग्रीक विचार, दर्शन एवं काव्य-संबंधित उत्कृष्ट नमूने मृदुफलक पट्टी (terracotta tablets) में कीलाकार लिपि ( uniform script) में दासों द्वारा लिपिबद्ध किये जाते थे । इन्हें बाद में विद्वानों द्वारा अध्ययन किया जाता था और ऐसी मान्यता है कि ज्यामितीय के प्रखर विद्वान यूक्लिड व गणितज्ञ आर्किमेड्स का सबंध इसी संस्था से था । यहाँ Jaws के Old Testament का हिब्रू से ग्रीक भाषा में अनुवाद किया गया। दुर्भाग्यवश यह स्थल सातवीं सदी ई.स. में अरबो द्वारा मिस्र पर आक्रमण के दौरान नष्ट हो गया ।"
सन् १८५८ में भारत में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना के साथ अंग्रेज यहाँ की परम्पराओं व रीति-रिवाजों को नजरअंदाज नहीं कर सके। उन्हें यहां की भाषा, विविध प्रजातीय विशेषताओं, जाति, संप्रदाय, पंथ एवं उनके इतिहास के बारे में जानना पड़ा । जिज्ञासा प्रवृत्ति ( Spirit of enquiry ) व ज्ञान-पिपासा की पूर्ति हेतु आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, बोटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया, जूलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, व जियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया जैसी विविध संस्थाओं की स्थापना हुई। इससे पूर्व गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स के कार्यकाल में १७८४ में विलियम जोन्स द्वारा एशियाटिक सोसायटी की स्थापना की गई । Asiatic Society of Bengal द्वारा प्रारंभिक काल (१७५७ - १८५८) में भारतीय जीवन के विविध पक्षों के अध्ययन की शुरुआत हुई । परन्तु भारत में संग्रहालय आंदोलन की वास्तविक शुरूआत १८१४ में कलकत्ता में Asiatic Society of the Oriental Museum की स्थापना के साथ हुई । इसमें विविध कलात्मक वस्तुओं, पुरातात्त्विक एव इतिहास संबंधी वस्तुओं को सोसायटी के संशोधन कियाकलापों से संबद्ध किया गया ।
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लार्ड कर्जन (१८९९-१९०५ ) ने भारत के गवर्नर जनरल के अपने कार्यकाल के दौरान यह महसूस किया कि भारत में ब्रिटिश सरकार ने देश की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण हेतु कोई विशेष ध्यान नहीं दिया है। अत: उन्होंने सांस्कृतिक रूप से समृद्ध इस पुरातन भूमि के शोध एवं संरक्षण हेतु पूर्ण प्रोत्साहन प्रदान किया । सर जान मार्शल को भारतीय पुरात्तत्व सर्वेक्षण का महानिदेशक नियुक्त कर उन्होंने इस दिशा में प्रथम सकारात्मक प्रयास किया। मार्शल ने विभिन्न उत्खननित अवशेषों को अपनी मूल स्थिति, स्थान एवं वातावरण में अध्ययन करने के उद्देश्य से उत्खननित स्थलों के समीप पुरातात्त्विक स्थल संग्रहालय स्थापित कर एक नई नीति की शुरूआत की । १९१० में सारनाथ में प्रथम पुरातात्त्विक स्थल संग्रहालय स्थापित हुआ, जिनकी संख्या आज २८-३०
है।
मरम (तत्कालीन सचिव, ब्रिटिश म्युज़ियम एसोसियेशन) व हरग्रीव्स (तत्कालीन महानिदेशक, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण) ने १९३६ में भारत में संग्रहालय आंदोलन का अध्ययन कर खराब रखरखाव, वित्तीय समस्या तथा अप्रशिक्षित संग्रहालयाध्यक्ष आदि मुख्य खामियाँ पायीं । उन्होंने अपनी रिपोर्ट में संपूर्ण सांस्कृतिक अध्ययन हेतु पुरातात्त्विक स्थल संग्रहालय को अत्यन्त उपयोगी बताया ।"
ईराक में उर (Ur) जैसे महत्त्वपूर्ण पुरातात्त्विक स्थलों का उत्खनन करने वाले सर लार्ड वूले जब १९३९ में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की गतिविधियों के अध्ययन हेतु भारत आये तो उन्होने विभिन्न पुरातात्त्विक स्थल संग्रहालयों को उदासीन अवस्था में पाया । उनकी टिप्पणी, सिफारिश एवं सुझावों से इन संग्रहालयों की स्थिति सुधारने में मदद मिली। उस समय कई ऐसे संग्रहालय थे जहाँ आसानी से पहुँचा नहीं जा सकता था परन्तु अब स्थिति काफी भिन्न है । आज ये संग्रहालय भारत के पर्यटन मानचित्र में हैं तथा प्रवासियों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र हैं ।
किसी भी पुरातात्त्विक स्थल संग्रहालय की उपयोगिता मुख्यत: तीन बातों पर निर्भर करती हैं :
पथि • दीपोत्सवांड खोटो - नवे - डिसे. २००१ • ७३
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