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पासणाहचरिउ (रइधू) में उस विघ्नकर्ता का नाम शंबर दिया गया है जबकि महाकवि वादिराजसूरि ने (अपने पार्श्वनाथचरितम् में) उसका नाम भूतानंद' बतलाया है। सिरिपासणाहचरियं (देवभद्र), त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित (हेमचन्द्र) तथा श्वेताम्बर-परम्परा में लिखे गए अन्य समस्त ग्रन्थकारों ने उस विघ्नकर्ता का नाम मेघमालिन बतलाया है। पउमकित्ति तथा बध श्रीधर ने भी इसी नाम का अपने-अपने ग्रन्थ में उल्लेख किया है। उपसर्ग-वर्णन की परम्परा कब से ? __ पार्श्व प्रभु के तपस्याकाल में उपसर्गों के वर्णन करने की परम्परा कब से प्रारंभ हुई, यह कहना कठिन है। किन्तु अध्ययन करने से यही विदित होता है कि कल्पसूत्र की रचना के बाद और गुणभद्रकृत उत्तरपुराण की रचना के पूर्व यह परम्परा प्रारंभ हुई थी। कल्याणमंदिर स्तोत्र के अध्ययन से विदित होता है कि उसके प्रणयन-काल तक यह परम्परा बन चुकी थी कि पार्श्व को तप-ध्यान से च्युत करने के लिए कमठ ने विदेषवश अनेक उपसर्ग किये थे। कल्याणमंदिर के उक्त संकेत से अनुमान होता है कि उसके प्रणेता आचार्य सिद्धसेन (छठवीं सदी) के समय में कमठ नाम का कोई व्यक्ति पार्श्वनाथ के विरोधी के रूप में ज्ञात रहा होगा। किन्तु जब उत्तरकालीन ग्रन्थों में पार्श्व के पूर्व-जन्मों का विस्तृत वर्णन किया जाने लगा तब कमठ को पार्श्व के प्रथम भव का विरोधी मान लिया गया और अंतिम भव के विरोधी को नाना प्रकार के नाम दिये जाने लगे। ___ पार्श्व पर किए उपसर्गों के प्रसंग में धरणेन्द्र नाम के नाग का उल्लेख अनेक कवियों ने किया है। उत्तरपुराण, त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित आदि ग्रन्थों में उसे उस नाम का ही जीव माना गया है, जिसे प्रारम्भ में कमठ ने अपने भीषण प्रहारों से मरणासन्न कर दिया था और पार्श्व ने जिसके कान में णमोकार-मंत्र पढ़ा था और जिसके फलस्वरूप वह देवयोनि प्राप्त कर सका था। महाकवि पउमकित्ति ने उसे केवल नाग कहा है, किन्तु उसके नाम आदि का उल्लेख नहीं किया, जब कि बुध श्रीधर ने उसे धरणेन्द्र-देव' के नाम से अभिहित किया है। कैवल्य-प्राप्तिकाल __बुध श्रीधर के अनुसार कमठ द्वारा किए गए उपसर्गों की समाप्ति पर पार्श्वनाथ को केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है। केवलज्ञान के पूर्व छद्मस्थकाल के विषय में दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों की परम्पराओं में कुछ मतभेद है। कल्पसूत्र में यह काल 83 दिन का बतलाया गया है जबकि तिलोयपण्णत्ती में वह काल 4 माह का बतलाया गया है। ___बुध श्रीधर के अनुसार पार्श्व प्रभु को केवलज्ञान की प्राप्ति चैत्र मास की कृष्णपक्ष की चतुर्थी फाल्गुनी नक्षत्र के समय में हुई थी जबकि अन्य दिगम्बर एवं श्वेताम्बर ग्रन्थकारों ने उसकी तिथि चैत्र बहुल चतुर्थी पूर्वाह्न काल के विशाखा नक्षत्र में मानी है। 1. पार्श्वनाथचरित (वादिराज) 10/88 2. दे.- प्राभारसम्भृतनभांसि रजांसि रोषद् उत्थापितानि कमठेन शठेन यानि।
छायापि तैस्तव न नाथ हता हताशो ग्रस्तस्त्वमीभिरयमेव परं दुरात्मा कल्याणमन्दिर स्तोत्र-|| 31।। अर्थात्- हे स्वामिन्, उस शठ कमठ ने क्रोधावेश में आकर आप पर भीषण धूलि उछाली, किन्तु आपके तप-तेज के प्रभाव से वह आपकी छाया तक पर यत्किंचित् भी आघात न पहुँचा सकी। पासणाह. (मोदी) भूमिका पृ. 40
पासणाह. (मोदी) भूमिका पृ. 40 5. पासणाह. 6/10
कल्पसूत्र 158 7. पासणाह. (बुध.) 8/6 8. पासणाह. (मोदी), भूमिका पृ. 41
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14 :: पासणाहचरिउ