Book Title: Nayopdesh Part 02 Tarangini Tarni
Author(s): Yashovijay Gani, Lavanyasuri
Publisher: Vijaylavanyasuri Gyanmandir

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Page 24
________________ नयामृततरहिणी तरङ्गिणीतरणिया समबहतो नयोपदेशः / / विषयः . पत्रं-पतिः 275 सर्वगतिषु ज्ञान-दर्शने सम्भवतः, तत. श्वारित्रवर्जिते ज्ञाने प्रमोदो न विधेय इत्यावेदकं सप्तत्रिंशदधिकशततमपद्यम्। 3961 276 केवलज्ञानं पूर्ववृत्तमपि शैलेश्यवस्था:. बाप्तशुद्धसंयमसहकारेणैव मुक्तिप्रदमि त्यावेदकमष्टत्रिंशदुत्तरशततमपद्यम् / 396 3 277 व्यवहारनये त्रयाणां तपो-ज्ञान संय मानां मुक्तिहेतुत्वं, शब्दर्जुसूत्रषु नयेषु केवलस्यैव संयमस्य मुक्तिहेतुत्वमित्युपदर्शकमेकोनचत्वारिंशदुत्तर शततमपद्यम् / 278 जीवः सर्वदेवमुक्तः, किन्त्वनवाप्ति अमान्मुक्त्यर्थ क्रिया क्रियते, ज्ञानार्जनेन विभ्रमत्यागेन चात्मनो नोपचयापचयौ भवत इति संग्रहनयमतावेदके 140 141 इत्यङ्कमिते पद्ये। 396 7 279, परस्परविभिन्नमार्गगानामपि नयानां . द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावेषु मध्ये भावे त्वैकमसं सर्वनयमयस्याद्वादप्रमाणपरिनिष्ठितश्चारित्रगुणलीनो भवेदित्युपदेशश्च द्विचत्वारिंशदुत्तरशततमपद्येन दर्शितः। 396 17 28. प्रवचनं सर्वत्र नयौघसम्बलितमिति नयान् स्थाने योजयन् शिष्यानपि तत्परिनिष्ठितां कुर्वन् बुधो यशः श्रियाऽऽलिहितो भवत्येवेत्युपदेशपरं त्रिचत्वारिंशदुत्तरशततमपद्यम् / 39 13 281 नयोपदेशविधातुरुपाध्यायस्य स्वपरि चयाववोधकं चतुश्चत्वारिंशदुत्तरशततमं प्रशस्तिपद्यम् / 396 15 282 शान-कर्मसमुच्चयवादे स्व-परसमय विचारप्रकटनं, तत्र विप्रति-.. पत्युपदर्शनं च / 396 19 283 तत्वज्ञानरूपव्यापारमन्तरेणैव तीर्थ- .. विशेषस्नानादिकर्मणां मोक्षं प्रति... कारणत्वमिलभ्युपगन्तॄणां भारती .... हः विपयः पत्रं-पछि याणामाशयस्योपदर्शनं, तत्र कर्म- .. तत्त्वज्ञानयोः स्वतन्त्रयोर्मोक्षं प्रति कारणत्वं न तु तत्त्वज्ञानं कर्मणो व्यापार इति विस्तरतः समुच्चयवादो निष्टडितः। 39621 284 अत्र प्रश्नप्रतिविधानोपोद्वलकतया 'नित्यनैमित्तिकैरेव' इति, 'अभ्यासात् पक्कविज्ञान' इति, 'अन्धं तमः प्रविशन्ति' इति, ‘मोक्षाश्रमचतुर्थो वै' इति, 'संन्यस्य सर्वकर्माणि' इति, 'काम्यानां कर्मणां न्यास' इति, * विद्यां चाविद्यां च' इति, ‘तमेव विदित्वा' इति, 'स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः' इति, 'तस्मात् तत्प्राप्तये' इति, ' उभाभ्यामपि पक्षाभ्यां' इति, 'सत्येन लभ्य' इति, परिज्ञानाद् भवेन्मुक्तिः' इति, . 'ज्ञानं प्रधानं ' इति, 'न्यायागवधनः' इत्यादिश्रुति-स्मृति-पुराण-गीतावचनान्युपदर्शितानि / 398 2 285 तत्त्वज्ञानमेव मुक्तौ कारणं, कर्म तु दुरितनिवृत्तिद्वारा तदङ्गमित्यभ्युपगन्छ्यु दयनाचार्यानुसारिणां मतमुपदर्शितम् / 404 , 286 स्वतन्त्राणां मतमावेदितम् / 4056 287 दुःखसाधनध्वंस एव मोक्षः, तत्र ज्ञान कर्म गोवैजात्येन मुमुक्षुविहितत्वादिना / वा तुल्यमेव हेतुत्वमिति स्याद्वादिना मतमुपदर्शितम्, तत्र नैयायिकादि मतमपाकृतम् / . ..407 8 288 ध्वंसे सामान्यधर्मावच्छिन्न प्रतियोगिता-- कत्वाभ्युपगन्तुरभिप्रायो दर्शितः / 408 35 289 तत्त्वज्ञानस्य कर्मनाशहेतुत्वे समुद्घाता धिकारे “णाऊण वेयणिजं" इति नियुक्तिवचनं प्रमाणतयोपदर्शितम्। 412 3 290 दोषपतिर्मतिज्ञानादित्यादिवचनेन यत् केवलज्ञानस्याकिश्चित्करत्वमुकं तदोष

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