Book Title: Nayopdesh Part 02 Tarangini Tarni
Author(s): Yashovijay Gani, Lavanyasuri
Publisher: Vijaylavanyasuri Gyanmandir

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Page 23
________________ 18 नवामृततरङ्गिणी सरहिनीवरणियां समजतो गयोपदेशः / - . विषयः पत्र-पतिः मुमुक्षोः प्रवृत्तिरेव मोक्षोपायत्वे मान. मित्यत्र “विफला विश्ववृत्तिनों" इत्युदयनवचनसंवादः। .. 382 5 252 उतपद्यार्थस्पष्टाधिगतये उदयनाचार्यग्रन्थ उल्लिखितः। 382 25 253 अनुपायवादः षष्ठ मिथ्यात्वस्थानं .. मोक्षोपायवादं च सम्यक्त्वस्थानमिति निगमितम् / ... 383 1 254 नास्तित्वादिवादानां षण्णां मार्ग त्यागान्मिथ्यात्वस्थानत्वं अस्तित्वादि.. वादानां षण्णां मार्गप्रवेशात् सम्यक्त्वस्थानत्वमिति / 383 3 255 स्याद्वादमुद्रया परम्पराकाक्षारहिताः सर्वेऽपि नया मिथ्यात्वमित्येतदर्थक पञ्चविंशत्युत्तरशततमपद्यम् / 383 . 256 धय॑शे चार्वाको नास्तिकः, धर्माशे सर्वेऽपि परतीथिका नास्तिका इत्यु पदर्शकं षड्विंशत्युत्तरशततमपद्यम् / 383 12 257 मार्गप्रवेशतः क्रियावादे सम्यक्त्वोक्तिः, मार्गल्यागतोऽज्ञानाक्रियाविनयवादिषु मिथ्यात्वोक्तिरित्युपदर्शकं सप्तविंशत्युत्तरशततमपद्यम् / 384 2 / 258 क्रियायां मोक्षेच्छयाऽऽवेशो मार्गानु सारितास्थैर्याधायक इत्युपदर्शकमष्टा विंशत्युत्तरशततमपथम् / 384 15 / / 259 अक्रियावादतः क्रियावादस्य मुख्यता प्रतिपादकं दशाचूर्णिगतं "जो अकि. रियावाई " इत्यादिवचनं दर्शितम् / 385 3 260 क्रियावाद्यादीनां त्रिषष्टयधिकशतत्रय-.. भेदप्रतिपादिकां “असियसयं किरियाणं " इति नियुक्तिगाथामुद्भाव्य तद् व्याख्यानं दर्शितम् / .... 3856 261 तत्र क्रियावादिनोऽशीत्युत्तरशतभेदा जीवादिनवपदार्थान् पट्टिकादौ . लिखित्वा परिपाट्याऽधोऽधोव्यवस्थापनेन विभाविताः। अः विषयः पत्र-पछि 262 अक्रियावादिनां चतुरशीतिभेदाः, तत्र .... केषाश्चित् " क्षणिकाः सर्वसंस्काराः" / इति पद्यमुद्भावितम् / . . 386 8 263 तेषां चतुरशीतिप्रकाराणामधिगमोपाय प्रपञ्चनम् / 264 निषेधगर्मभेदादमिलापासम्भवप्रश्न उद्भाव्य समाहितः / 388 4 265 अज्ञानिकानां सप्तषष्टिभैदा विभाविताः। 389 8 166 उक्तसप्तषष्टिभेदप्रकाराधिगमोपायो . दर्शितः। 39. 4 267 वैनयिकानां द्वात्रिंशद्भेदा उपदर्शिताः, तेषामवगमोपायप्रकारो व्यावर्णितः / 391 . 268 पाखण्डिकानामेतेषां सर्वसझयया त्रिष ष्टयधिकानि त्रीणि शतानि निगमितानि, एतत्संवादकतया “आस्तिकमत आ त्माद्या" इत्यादिपद्यचतुष्टयमुपदर्शितम् / 392 2 269 स्वरूपेणात्माऽस्त्यवेत्यादिनयवादिनां जैनानां पाखण्डित्वप्रसङ्गाशङ्कायाः परिहारः, तत्रैकान्तेन षट्कायश्रद्धाने सम्यक्त्वाभावावेदिका “णियमेण सद्द हन्तो" इति सम्मतिगाथोद्भाविता / 392 1 270 उक्तसम्मतिगाथाया व्याख्यानं, तत्र सम्मतिटीकाकृतामुक्त्युद्दछिनपुरस्सरमाशयोपवर्णनम् / 393 1 271 क्रियानयः क्रियायामुक्तिकारणत्वं ब्रवीति, झाननयो ज्ञानस्येत्युपदर्शक मेकोनत्रिंशदुतरशततमपद्यम् / . 395 5 271 क्रियेव फलदा न शानं फलदमिति क्रियाप्रशंसापरं त्रिशदुत्तरशततमपद्यम्। 395 7 272 ज्ञानस्तुतिपरमेकत्रिंशदुत्तरशततमपद्यम्। 395 9 273 ज्ञान-क्रिययोस्तुल्यकक्षत्वावदकं 132- 133.134-135 इत्यश्चतुष्टयसम्मितं . पद्यचतुष्टयम् / . .395 11 274 तुर्यगुणस्थानमाविक्षायोपशमिकज्ञानं फलार्थ षष्टगुणस्थानजसंयममपेक्षत इत्यावेदकं षत्रिंशदधिकशततमपद्यम्। 395 19

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